दिल्ली के उपराज्यपाल वी. सक्सेना ने लेखिका अरुंधति रॉय और कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय कानून के पूर्व प्रोफेसर डॉ. शेख शौकत हुसैन के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम की धारा 45(1) के तहत मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी है। इन पर 2010 में ‘आजादी-एकमात्र रास्ता’ के बैनर तले आयोजित एक सम्मेलन में कथित तौर पर ‘भड़काऊ’ भाषण देने का आरोप है।
आरोप है कि अरुंधति रॉय ने सम्मेलन में भाषण देते हुए इस बात का जोरदार प्रचार किया कि कश्मीर कभी भारत का हिस्सा नहीं था और भारत के सशस्त्र बलों ने उस पर जबरन कब्जा कर रखा था। दर्ज की गई एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि रॉय और अन्य वक्ताओं ने सम्मेलन के दौरान भड़काऊ भाषण दिए। अक्टूबर 2023 में, उपराज्यपाल सक्सेना ने लेखिका अरुंधति रॉय और कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर शेख शौकत हुसैन के खिलाफ कथित तौर पर ‘भड़काऊ भाषण’ देने का मुकदमा चलाने की अनुमति दी थी। सक्सेना ने कथित तौर पर उल्लेख किया कि रॉय और हुसैन के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153ए, 153बी और 505 के तहत प्रथम दृष्टया मामला बनता है।
ये धाराएँ क्रमशः धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा, राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक कथनों और सार्वजनिक अव्यवस्था को भड़काने के उद्देश्य से जानबूझकर अपमान करने के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने से संबंधित हैं।
धारा 153A उन कार्यों से संबंधित है जो धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास या भाषा जैसे कारकों के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देते हैं और इसमें सामाजिक सद्भाव बनाए रखने के लिए हानिकारक व्यवहार शामिल हैं। धारा 153B ऐसे बयान या कथन देने से संबंधित है जो राष्ट्रीय एकता और एकीकरण को कमजोर करते हैं। धारा 505 सार्वजनिक अव्यवस्था को भड़काने के उद्देश्य से जानबूझकर अपमान करने से संबंधित है।
अरुंधति की किताब को मिल चुका बुकर प्राइज
साल 1997 में लेखिका अरुंधति राय की किताब ‘द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स’ को बुकर प्राइज मिला चुका है। यह उनका पहला उपन्यास था। इस पाने वालीं वे पहली भारतीय महिला हैं। नोबेल पुरस्कार के बाद बुकर प्राइज को दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा पुरस्कार माना जाता है। यह दुनियाभर में साहित्य जगत के प्रमुख पुरस्कारों में से एक है।
साल 2014 में रॉय को दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की टाइम 100 की सूची में शामिल किया गया था। अरुंधति लेखन की दुनिया में आने से पहले सिनेमा में भी काम कर चुकी हैं। फिल्मों में अभिनय के साथ ही उन्होंने स्क्रीनप्ले भी लिखा है। साल 1988 में उन्हें बेस्ट स्क्रीनप्ले के लिए नेशनल फिल्म अवॉर्ड भी मिला चुका है।