नई दिल्ली: प्रतिबंधित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद (JeM) अब अपनी पहचान छिपाने और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से बचने के लिए अपना नाम बदलने की तैयारी में है। पाकिस्तान में इस संगठन को जल्द ही ‘अल-मुराबितुन’ के नाम से जाना जाएगा, जिसका अरबी में अर्थ है — “इस्लाम के रक्षक”।
सूत्रों के अनुसार, यह बदलाव आतंकी संगठन के संस्थापक मसूद अजहर के भाई यूसुफ अजहर के लिए बनाए जा रहे स्मारक समारोह में आधिकारिक रूप से सामने आ सकता है। यह कार्यक्रम अगले सप्ताह आयोजित होने की संभावना है।
आर्थिक तंगी से जूझ रहा है जैश
भारत में संसद हमले, 26/11 मुंबई हमला, उरी और पुलवामा जैसे आतंकी हमलों के लिए जिम्मेदार इस आतंकी संगठन की अब कमर टूट चुकी है। भारत समेत कई देशों द्वारा प्रतिबंधित किए जाने के बाद जैश-ए-मोहम्मद को धन जुटाने में भारी दिक्कतें आ रही हैं।
एक रिपोर्ट में बताया गया कि नाम बदलने का मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से बचकर नई पहचान के जरिए फंडिंग जुटाना है। नाम बदलने से यह संगठन खुद को नए रूप में प्रस्तुत करके दानदाताओं और फंडिंग नेटवर्क को गुमराह करना चाहता है।
FATF की रिपोर्ट में खुलासे
फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की जुलाई 2025 में जारी एक रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि जैश-ए-मोहम्मद अब डिजिटल माध्यमों जैसे ई-वॉलेट और यूपीआई ट्रांसफर का इस्तेमाल कर रहा है ताकि इसकी गतिविधियों पर नजर रखना मुश्किल हो जाए।
एफएटीएफ के मुताबिक, अब तक कम से कम पांच ई-वॉलेट का पता लगाया जा चुका है, जिनका सीधा संबंध मसूद अजहर के परिवार या जैश के शीर्ष नेतृत्व से है।
4 अरब पाकिस्तानी रुपये और 300 ट्रेनिंग कैंप का प्लान
एफएटीएफ की रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि इस नए नाम के तहत आतंकी संगठन का लक्ष्य है लगभग 4 अरब पाकिस्तानी रुपये इकट्ठा करना और 300 से अधिक प्रशिक्षण केंद्र खोलना। यह कदम संगठन की पुनरुद्धार योजना का हिस्सा है, जिसमें युवाओं की भर्ती और उन्हें आतंकी गतिविधियों के लिए प्रशिक्षण देना शामिल है।
पाकिस्तान की चाल
डिजिटल फंडिंग से जुड़े इस नए सिस्टम का एक और मकसद यह भी है कि पाकिस्तान यह दावा कर सके कि उसने आतंकी संगठनों को औपचारिक बैंकिंग चैनलों से फंड देना बंद कर दिया है। इससे पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुद को एफएटीएफ के नियमों का पालन करने वाला देश दिखा सकता है।
हालांकि, रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि पाकिस्तान द्वारा जैश-ए-मोहम्मद को अप्रत्यक्ष रूप से फंडिंग जारी है, भले ही माध्यम बदला गया हो। जैश-ए-मोहम्मद का ‘अल-मुराबितुन’ बनना केवल एक छलावा और रणनीतिक बदलाव है, जिससे यह आतंकी संगठन फिर से सक्रिय हो सके। भारत सहित वैश्विक समुदाय को इस नए नाम और फंडिंग चैनलों पर कड़ी निगरानी रखने की आवश्यकता है ताकि यह आतंकवाद फिर से सिर न उठा सके।













