केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने गुरुवार को कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में 31 वर्षीय प्रशिक्षु डॉक्टर के बलात्कार और हत्या की जांच पर अपनी स्थिति रिपोर्ट पेश की। मामले में केंद्रीय एजेंसी की स्थिति रिपोर्ट ने चौंकाने वाले विवरण सामने लाए।
सीबीआई ने कहा कि कोलकाता पुलिस ने पहले डॉक्टर के परिवार के सदस्यों को बताया कि यह आत्महत्या का मामला है, फिर उन्होंने उन्हें बताया कि यह हत्या का मामला है। केंद्रीय एजेंसी ने यह भी उल्लेख किया कि पीड़िता के दोस्त को मामले में लीपापोती का संदेह था और इसलिए, उसने वीडियोग्राफी पर जोर दिया।
पीड़िता की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने लाइव लॉ के हवाले से कहा कि, “पीड़िता के वरिष्ठ डॉक्टरों, सहयोगियों ने वीडियोग्राफी के लिए कहा, इसका मतलब है कि उन्हें भी लगा कि लीपापोती की गई है।” इसके अलावा, सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि मृतक के अंतिम संस्कार के बाद रात 11:45 बजे एफआईआर दर्ज की गई।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि कोलकाता पुलिस ने अपने रिकॉर्ड में अप्राकृतिक मौत के रूप में मामला दर्ज करने में ‘बेहद परेशान करने वाली’ देरी की। इसमें उल्लेख किया गया कि अप्राकृतिक मौत की डीडी एंट्री सुबह 10:10 बजे दर्ज की जाती है, लेकिन रात में अपराध स्थल को सुरक्षित कर लिया गया, जिससे महत्वपूर्ण साक्ष्य जब्त करने में देरी हुई।
इसके अलावा, शीर्ष अदालत ने कोलकाता पुलिस के अधिकारी को, जिसने इस भयावह घटना के बारे में एफआईआर दर्ज की थी, अगली सुनवाई में समय बताने के लिए उपस्थित होने का निर्देश दिया। कोर्ट ने पीड़िता के पोस्टमार्टम के समय पर भी पुलिस से सवाल किया। पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि पोस्टमार्टम शाम 6:10-7:10 बजे के आसपास किया गया था।
जिसपर न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने कहा कि “यह बहुत आश्चर्यजनक है, की पोस्टमार्टम अप्राकृतिक मौत के पंजीकरण से पहले किया जाता है!” शीर्ष अदालत ने पूछा कि जब पुलिस पीड़िता के शव को पोस्टमार्टम के लिए ले गई तो क्या यह अप्राकृतिक मौत का मामला था या नहीं और अगर यह अप्राकृतिक मौत का मामला नहीं था, तो पोस्टमार्टम करने की क्या जरूरत थी।