नई दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के चेयरमैन एस एन सुब्रमण्यन के 90 घंटे कार्य सप्ताह पर दिए बयान पर विरोध जताया है। खड़गे ने कहा कि यह बयान न केवल असंवेदनशील है, बल्कि यह उस श्रम कानून के खिलाफ भी है जिसे जवाहरलाल नेहरू और बी आर आंबेडकर जैसे नेताओं ने लागू किया था। इन नेताओं ने श्रमिकों के लिए आठ घंटे से अधिक काम करने पर प्रतिबंध लगाने की बात की थी।
खड़गे ने L&T के नए मुख्यालय के उद्घाटन समारोह में कंपनी के काम की सराहना की, लेकिन सुब्रमण्यन के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “मैं L&T को उनके अच्छे काम के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं, लेकिन कंपनी के CEO ने 90 घंटे कार्य सप्ताह की बात की है, मैं इस बात से सहमत नहीं हूं।” उन्होंने यह भी कहा कि श्रमिकों को आठ घंटे से ज्यादा काम नहीं करना चाहिए, और यह नेहरू और आंबेडकर द्वारा बनाई गई फैक्ट्री एक्ट का हिस्सा था।
खड़गे ने आगे कहा, “किसी समय पर 9 घंटे का काम तय हुआ था, लेकिन अब 12-14 घंटे की बात हो रही है। यह गलत है। यह नजरिया बदलना चाहिए, लेकिन मैं फिर भी कंपनी का धन्यवाद करता हूं क्योंकि उन्होंने बहुत अच्छा काम किया है।”
सुब्रमण्यन के बयान के बाद उन्हें काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। उन्होंने अपने बयान में कहा था, “मुझे अफसोस है कि मैं आपको रविवार को काम करने के लिए नहीं कह सकता। अगर मैं यह कर सकता तो मैं और खुश होता। क्योंकि मैं रविवार को काम करता हूं, आप घर पर बैठे क्या करते हैं? कितने समय तक अपनी पत्नी को घूरे रहते हैं? चलिए ऑफिस जाइए और काम शुरू कीजिए।”
सुब्रमण्यन के इन शब्दों ने न केवल कार्य-जीवन संतुलन के मुद्दे को लेकर बहस को जन्म दिया, बल्कि उनके सेक्सिस्ट टोन की भी आलोचना की गई। उनका यह बयान खासकर महिला कर्मचारियों के लिए अपमानजनक समझा गया।
L&T के HR प्रमुख सोनिका मुरलीधरन ने चेयरमैन के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उनकी बातें संदर्भ से बाहर निकालकर गलत तरीके से पेश की गई हैं, जिससे गलतफहमियां और अनावश्यक आलोचना हुई है।
इस बीच, हाल ही में प्रकाशित विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) की “फ्यूचर ऑफ जॉब्स” रिपोर्ट में यह सामने आया है कि कर्मचारी कार्य घंटों को अन्य किसी भी सुविधा से ज्यादा महत्व देते हैं, जबकि नियोक्ता इसे पेंशन योजनाओं जैसे अन्य लाभों से कम प्राथमिकता देते हैं।
इस बहस से यह साफ है कि 21वीं सदी में कार्य और जीवन के बीच संतुलन का मुद्दा लगातार महत्वपूर्ण बनता जा रहा है। जहां एक ओर कुछ उद्योगपतियों का मानना है कि कर्मचारियों को अधिक समय तक काम करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए, वहीं दूसरी ओर श्रमिकों और उनके अधिकारों के प्रति संवेदनशीलता की जरूरत को भी समझा जाना चाहिए।