
काठमांडू: नेपाल में चल रहे ‘Gen Z आंदोलन’ ने गुरुवार को एक बड़ा राजनीतिक कदम उठाते हुए घोषणा की कि देश की पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की अंतरिम प्रधानमंत्री की भूमिका निभाएंगी। साथ ही, समूह ने यह भी ऐलान किया कि आगामी छह महीनों के भीतर आम चुनाव कराए जाएंगे, ताकि देश की जनता विशेष रूप से युवाओं को अपनी पसंद का नेतृत्व चुनने का मौका मिल सके।
सेना के साथ समन्वय में निर्णय
इस ऐतिहासिक घोषणा से पहले Gen Z समूह के प्रतिनिधियों ने नेपाली सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिग्देल से सेना मुख्यालय में मुलाकात की। इसके बाद आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में समूह ने बताया कि देश की पुनर्निर्माण और सफाई व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए सेना के साथ मिलकर काम किया जाएगा।
Gen Z की ओर से कहा गया,
“देशव्यापी सफाई समिति बनाई जाएगी और सभी नेपाली नागरिक, खासकर युवा, ‘नया नेपाल’ बनाने में योगदान देंगे। वर्तमान संकट की स्थिति में सुशीला कार्की अंतरिम नेतृत्व के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प हैं। एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनके पास अनुभव की कोई कमी नहीं है।”
‘Gen Z नेतृत्व नहीं चाहता सत्ता, बल्कि बदलाव’
Gen Z नेता अनिल बानिया ने कहा कि यह आंदोलन पुराने नेताओं की विफलताओं और जनता के साथ विश्वासघात के खिलाफ शुरू किया गया था। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आंदोलन का उद्देश्य संविधान को हटाना नहीं, बल्कि उसमें जरूरी संशोधन करना है।
“हम सत्ता नहीं चाहते, हम निगरानी रखना चाहते हैं। हमारा प्रयास लोकतंत्र को मजबूत करना है, न कि उसे खत्म करना,” बानिया ने कहा। उन्होंने आगे जोड़ा कि ऑनलाइन सर्वेक्षण के माध्यम से Gen Z नेताओं ने सुशीला कार्की के नाम का समर्थन किया।
युवाओं को तोड़ने की कोशिशें: दिवाकर डंगोल
एक अन्य युवा नेता दिवाकर डंगोल ने आरोप लगाया कि कुछ राजनीतिक दल Gen Z आंदोलन को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
“हम अभी नेतृत्व संभालने के लिए तैयार नहीं हैं, लेकिन हमारी सोच साफ है। कुछ राजनीतिक शक्तियां हममें फूट डालने की कोशिश कर रही हैं। आज जो खून बहा है, वह आपके (पुराने नेताओं) कारण है। हम खून नहीं चाहते, हम संसद को भंग करना चाहते हैं, लेकिन संविधान को नहीं मिटाना चाहते।”
मौतों का आंकड़ा बढ़कर 31
8 सितंबर 2025 से शुरू हुए इस आंदोलन में अब तक कम से कम 31 लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें से 25 मृतकों की पहचान हो चुकी है, जबकि 6 की पहचान अभी भी नहीं हो पाई है। यह जानकारी त्रिभुवन विश्वविद्यालय टीचिंग अस्पताल के फोरेंसिक विभाग ने दी है।
डॉ. गोपाल कुमार चौधरी, विभागाध्यक्ष ने कहा,
“हमने अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकॉल के तहत पोस्टमार्टम किया है। कुछ शवों की पहचान अब तक नहीं हो सकी है। फिलहाल हम अधिक जानकारी साझा नहीं कर सकते।”
पृष्ठभूमि: कैसे शुरू हुआ आंदोलन?
सरकार द्वारा प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद यह विरोध शुरू हुआ था। सरकार ने इसका कारण राजस्व और साइबर सुरक्षा बताया था। लेकिन युवाओं ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला मानते हुए विरोध का बिगुल बजा दिया।
प्रदर्शन केवल काठमांडू तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पोखरा, बुटवल और बीरगंज जैसे प्रमुख शहरों तक फैल गया। आंदोलन की अगुवाई मुख्य रूप से छात्रों और युवा कार्यकर्ताओं ने की, जिसे अब तक का सबसे संगठित युवा आंदोलन माना जा रहा है।
Nepal का ‘Gen Z आंदोलन’ अब केवल एक विरोध नहीं, बल्कि सिस्टम परिवर्तन की दिशा में बढ़ता एक बड़ा राजनीतिक प्रयोग बनता जा रहा है। सुशीला कार्की का अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में चयन यह संकेत देता है कि युवा अब केवल नाराज़गी नहीं, बल्कि विकल्प भी प्रस्तुत कर रहे हैं। आने वाले 6 महीने नेपाल के लोकतांत्रिक इतिहास में निर्णायक सिद्ध हो सकते हैं।












