8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया। तमिलनाडु के राज्यपाल से जुड़ी सुनवाई में शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यपाल विधानसभा से पारित विधेयकों को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते। कोर्ट ने अनुच्छेद 200 की व्याख्या करते हुए स्पष्ट किया कि राज्यपाल के पास वीटो का अधिकार नहीं है और उन्हें मंत्रिपरिषद की सलाह माननी होगी। इस फैसले ने राष्ट्रपति और राज्यपालों द्वारा समय-सीमा में निर्णय लेने की बहस को जन्म दिया। अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए सुप्रीम कोर्ट से 14 गहरे संवैधानिक सवाल पूछे हैं।
ये सभी सवाल राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों, विवेकाधिकार और न्यायिक समीक्षा से जुड़े हैं। इनमें अनुच्छेद 200, 201, 361, 143, 142, 145(3), 131 जैसे अहम संवैधानिक प्रावधान शामिल हैं।
तो चलिए जानते हैं राष्ट्रपति द्वारा पूछे गए ये 14 सवाल कौन से हैं—
- अनुच्छेद 200 और राज्यपाल के विकल्प: जब कोई विधेयक राज्यपाल के पास आता है, तो उनके पास कौन-कौन से संवैधानिक विकल्प होते हैं?
- क्या मंत्रिपरिषद की सलाह अनिवार्य है? क्या राज्यपाल अनुच्छेद 200 के तहत हमेशा मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य हैं?
- क्या विवेकाधिकार पर कोर्ट सवाल उठा सकती है? राष्ट्रपति जानना चाहती हैं कि अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के विवेकाधीन फैसले न्यायिक समीक्षा के दायरे में आते हैं या नहीं।
- अनुच्छेद 361 और संरक्षण: राष्ट्रपति पूछती हैं कि क्या अनुच्छेद 361 राज्यपाल के फैसलों की न्यायिक समीक्षा पर पूरी तरह रोक लगाता है?
- क्या कोर्ट समय-सीमा तय कर सकती है? जब संविधान में राज्यपाल की शक्तियों के प्रयोग की कोई समय-सीमा तय नहीं है, तो क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसा कर सकती है?
- राष्ट्रपति के विवेकाधिकार की समीक्षा: अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के विवेकाधिकार की भी न्यायिक समीक्षा संभव है या नहीं?
- राष्ट्रपति की निर्णय प्रक्रिया पर समय-सीमा? क्या कोर्ट राष्ट्रपति को भी अनुच्छेद 201 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग तय समय में करने का निर्देश दे सकती है?
- अनुच्छेद 143 और कोर्ट से सलाह: क्या राष्ट्रपति को तब सुप्रीम कोर्ट से सलाह लेनी चाहिए जब राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजते हैं?
- क्या कानून बनने से पहले न्यायिक समीक्षा संभव है? क्या राष्ट्रपति और राज्यपाल के फैसले कानून बनने से पहले ही कोर्ट के दायरे में आ सकते हैं?
- अनुच्छेद 142 की शक्ति कितनी व्यापक है? क्या सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति या राज्यपाल के संवैधानिक कार्यों में बदलाव कर सकता है?
- राज्यपाल की सहमति के बिना कानून? क्या कोई राज्य कानून राज्यपाल की मंजूरी के बिना लागू हो सकता है?
- अनुच्छेद 145(3) और बेंच की संरचना: क्या संविधान से जुड़े मामलों को पांच जजों की बेंच को भेजना अनिवार्य है?
- अनुच्छेद 142 और कानून के विरुद्ध आदेश? क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत ऐसे आदेश दे सकता है जो कानून या संविधान से मेल न खाते हों?
- अनुच्छेद 131 और कोर्ट का क्षेत्राधिकार: क्या संविधान सुप्रीम कोर्ट को केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विवादों को सुलझाने से रोकता है, सिवाय अनुच्छेद 131 के तहत?
इन सवालों ने न केवल सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र और सीमाओं पर नई बहस को जन्म दिया है, बल्कि राज्यपाल और राष्ट्रपति की संवैधानिक भूमिका को भी फिर से केंद्र में ला दिया है। अब सबकी नजर इस पर है कि शीर्ष अदालत इन सवालों का क्या जवाब देती है।