राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) भारत का एक ऐसा संगठन है, जो पिछले 100 वर्षों से समाज, राजनीति और संस्कृति पर गहरी छाप छोड़ रहा है। हिन्दू राष्ट्रवाद के विचारों पर आधारित इस संगठन ने भारतीय समाज को कई दृष्टिकोणों से प्रभावित किया है। जहाँ एक ओर इस संगठन ने भारतीय समाज में कई सकारात्मक योगदान दिए हैं, वहीं दूसरी ओर यह हमेशा विवादों के घेरे में भी रहा है। RSS के शताब्दी वर्ष पर, यह जरूरी है कि हम इसके योगदान और विवादों पर नजर डालें, ताकि इसके प्रभाव को सही तरीके से समझा जा सके।
RSS का निर्माण
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गठन 27 सितंबर 1925 को नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा किया गया था। डॉ. हेडगेवार एक चिकित्सक थे, लेकिन वे भारतीय समाज की स्थिति और विशेष रूप से हिन्दू समाज के उत्थान के प्रति गहरी चिंता रखते थे। उस समय भारत ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन था और देश सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से बहुत अधिक तनावपूर्ण स्थिति में था। हिन्दू समाज जातिवाद, धार्मिक भेदभाव और उपेक्षा का सामना कर रहा था, जबकि मुसलमानों के साथ विभाजन की स्थिति भी बनी हुई थी।
हेडगेवार का दृष्टिकोण था कि हिन्दू समाज को एकजुट किया जाए और उसे आत्मनिर्भर और मजबूत बनाया जाए। उनका विश्वास था कि केवल एक मजबूत और संगठित हिन्दू समाज ही स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग कर सकता है। RSS का उद्देश्य था – हिन्दू समाज में अनुशासन, राष्ट्रप्रेम और समाजसेवा के मूल्यों को बढ़ावा देना। इस प्रकार RSS का गठन किया गया, जो एक स्वयंसेवी संगठन के रूप में कार्य करता है और जो अपनी शाखाओं के माध्यम से समाज में सुधार की दिशा में काम करता है।
RSS का विकास
आरंभ में RSS केवल एक छोटे संगठन के रूप में था, लेकिन धीरे-धीरे यह देश भर में फैलने लगा। इसके सदस्यों की संख्या बढ़ी, और विभिन्न राज्यों में इसकी शाखाएँ स्थापित हुईं। RSS का मुख्य उद्देश्य था – हिन्दू समाज को संगठित करना और उसे समाज की भलाई के लिए प्रेरित करना। इस संगठन ने सशस्त्र प्रशिक्षण, शारीरिक शिक्षा, और आत्मनिर्भरता पर जोर दिया।
RSS की कार्यप्रणाली में शाखाएँ, कक्षा के माध्यम से धार्मिक और सांस्कृतिक शिक्षा, समाज सेवा, और राष्ट्रीय मुद्दों पर सक्रियता शामिल थी। इसने देश के विभिन्न हिस्सों में अपने विचार फैलाए और धीरे-धीरे हिन्दू समाज को अपनी ओर आकर्षित किया। इसके परिणामस्वरूप RSS का प्रभाव भारतीय राजनीति और समाज में बढ़ता चला गया।
RSS और विवाद
RSS ने जितना ध्यान समाज में सुधार की दिशा में दिया, उतना ही यह राजनीति और समाज में विवादों का भी हिस्सा बना। इसके कई कार्य और विचारधारा को लेकर विरोध हुआ है।
- हिन्दू राष्ट्रवाद: RSS का मूल विचार हिन्दू राष्ट्रवाद पर आधारित है, जो कभी-कभी अन्य धर्मों के प्रति इसके दृष्टिकोण को लेकर आलोचनाओं का शिकार हो जाता है। RSS की यह विचारधारा अक्सर आलोचना की जाती है कि यह भारत को एक हिन्दू राष्ट्र बनाने की कोशिश करता है और अन्य धर्मों को अपनी विचारधारा से बाहर करता है।
- महात्मा गांधी की हत्या: RSS का नाम महात्मा गांधी की हत्या से जुड़ा हुआ है, क्योंकि नाथूराम गोडसे, जिन्होंने गांधी जी की हत्या की थी, RSS के सदस्य थे। हालांकि, RSS ने इस हत्या से खुद को अलग किया और कहा कि गोडसे का कृत्य उसके विचारों के खिलाफ था, लेकिन इस घटना ने RSS की छवि को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया।
- राजनीतिक विवाद: RSS के संबंध भारतीय जनता पार्टी (BJP) से जुड़े होने के कारण इसे भारतीय राजनीति में भी विवादों का सामना करना पड़ा। भाजपा और RSS की विचारधाराओं में गहरे संबंध हैं, और RSS को अक्सर भाजपा के चुनावी रणनीतियों और फैसलों में एक केंद्रीय भूमिका निभाने के रूप में देखा जाता है। इसे कभी-कभी “BJP का पितृ संगठन” भी कहा जाता है।
- सामाजिक और सांस्कृतिक विवाद: RSS का समाज में हिन्दू संस्कृति और परंपराओं को बढ़ावा देने का दृष्टिकोण भी समय-समय पर आलोचना का शिकार हुआ है। इसके सांस्कृतिक कार्यक्रमों और धार्मिक उद्देश्यों को लेकर भी कई बार सवाल उठाए गए हैं, खासकर जब यह धर्म और जाति के बीच विभाजन की ओर इशारा करता है।
RSS का योगदान
हालाँकि RSS विवादों में घिरा हुआ रहा है, लेकिन इसके योगदानों को भी नकारा नहीं किया जा सकता।
- समाज सेवा: RSS ने हमेशा समाज में कार्य करने की कोशिश की है। यह संगठन प्राकृतिक आपदाओं, महामारी, और अन्य आपातकालीन स्थितियों में राहत कार्यों में सक्रिय रूप से शामिल होता रहा है। उदाहरण के लिए, कोरोना महामारी के दौरान RSS ने बड़े पैमाने पर राहत कार्य किए थे, जिसमें खाद्यान्न वितरण, स्वच्छता अभियान, और स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन में मदद शामिल थी।
- संगठनात्मक शक्ति: RSS ने भारत में एक ऐसा संगठन बनाया है, जो स्वयंसेवकों के विशाल नेटवर्क पर आधारित है। इसके पास लाखों स्वयंसेवक हैं, जो समाज के विभिन्न हिस्सों में कार्य करते हैं। इसका नेटवर्क सरकारी योजनाओं और सामाजिक कार्यों में सहयोग देने में सक्षम है।
- शरीरिक शिक्षा और अनुशासन: RSS ने हमेशा युवाओं को शारीरिक शिक्षा और अनुशासन के महत्व को बताया है। इसके शाखाओं में शारीरिक व्यायाम, खेल और सैन्य प्रशिक्षण का आयोजन होता है, जो युवाओं को आत्मनिर्भर और मजबूत बनाने में मदद करता है।
- राष्ट्रवाद और एकता का संदेश: RSS ने हमेशा भारत के एकीकरण और राष्ट्रप्रेम को बढ़ावा दिया है। इसके कार्यकर्ताओं ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और देश की एकता और अखंडता को मजबूत करने के लिए काम किया।
RSS का शताब्दी वर्ष
RSS का शताब्दी वर्ष इसके संगठनात्मक विकास, समाज में योगदान और विवादों के बावजूद एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह संगठन न केवल हिन्दू समाज को संगठित करने का कार्य करता है, बल्कि इसके प्रभाव के कारण भारतीय राजनीति और समाज के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में उभरा है। शताब्दी वर्ष पर, RSS को इस बात की चुनौती होगी कि वह अपने विवादों को निपटाकर समाज के विभिन्न वर्गों में अपनी उपस्थिति को और अधिक सकारात्मक तरीके से प्रस्तुत करें।
निष्कर्ष:
RSS के 100 वर्षों का सफर उतार-चढ़ाव से भरा हुआ है। विवादों और आलोचनाओं के बावजूद इसके योगदानों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह संगठन आज भी भारतीय राजनीति, समाज और संस्कृति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। समय के साथ, RSS को अपनी विचारधारा और कार्यप्रणाली में सुधार की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन यह संगठन भारतीय समाज के विकास में हमेशा एक सक्रिय और प्रभावी ताकत बना रहेगा।