रतन टाटा ने क्यों रखा अपनी गाड़ी का नाम जापानी पहलवान के ऊपर, Tata Sumo के राज़ जानकार हो जाएंगे हैरान
अगर आप से पूछा जाए कि सबसे पहले आप किस गाड़ी में बैठे थे तो ज्यादातर लोगों का जवाब टाटा सूमो होगा… लेकिन क्या आपको पता है कि इसका नाम टाटा सूमो ही क्यों पड़ा… साल 1994 देश में एक SUV, या कहें MUV लॉन्च हुई. इस गाड़ी ने अगले 25 वर्षों तक भारत की सड़कों पर राज किया. क्या गांव और क्या शहर, इस गाड़ी का जलवा हर जगह एक बराबर दिखा. देश में अगर किसी को भी एक ताकतवर और भरोसेमंद गाड़ी लेनी होती तो सिर्फ इसका नाम दिमाग में कौंधता. और वो गाड़ी का नाम टाटा सूमो था. इसका साइज और ताकत देखकर लगता है ना कि कितना सही नाम है. जापान के फेमस सूमो रेसलर्स से मिलता जुलता, नहीं! लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है. टाटा सूमो के नाम का जापान के पहलवानों से कोई लेना-देना नहीं है. बल्कि इसका नाम तो कंपनी के इनहाउस ‘पहलवान’ के नाम पर रखा गया है. मगर ये पहलवान टाटा में कुश्ती नहीं लड़ते थे. सूमो मतलब सुमंत मूलगांवकर जब टाटा सूमो लॉन्च हुई तब सुमंत मूलगांवकर टाटा मोटर्स में मैनेजिंग डारेक्टर (MD) के तौर पर काम कर रहे थे. सुमंत और उनकी टॉप एग्जीक्यूटिव की टीम तब इस गाड़ी को लॉन्च करने की तैयारी कर रही थी. लेकिन उसी हर रोज एक घटना होती थी… जहां सारे बॉस लोग एक साथ खाना खाते, वहीं सुमंत उस टाइम गायब हो जाते और घंटों तक तक वापस भी नहीं आते. इसने टाटा मोटर्स के हाई मैनेजमेंट के बीच उनको चर्चा का विषय बना दिया. जब किसी से रहा नहीं गया तो कुछ कर्मचारियों ने एक दिन दोपहर के भोजन के समय उनका पीछा किया… लोगों को खूब हैरानी हुई जब उन्होंने सुमंत को एक हाईवे किनारे के ढाबे पर खाना खाते देखा. ऑफिस से सुमड़ी में निकले सुमंत ना सिर्फ ढाबे पर देसी खाना खा रहे थे, बल्कि वहां खाना खा रहे ट्रक ड्राइवरों के साथ गप्पें भी मार रहे थे… पता चला कि मूलगांवकर ट्रक ड्राइवरों के साथ असल में काम की रिसर्च कर रहे थे. उनसे बात करते हुए नोट्स बनाते, सड़कों पर गाड़ियों की दिक्कतों के बारे में बात करते और फिर वो पूरी जानकारी टाटा के डिजाइन और रिसर्च एण्ड डेवलपमेंट से साझा करते. सुमंत के काम करने की खबर जब रतन टाटा तक पहुंची. इसके बाद कंपनी ने उसका भविष्य बदलने वाली गाड़ी का नाम सुमंत मूलगांवकर के नाम पर रखने का फैसला किया. उनके नाम के पहले अक्षरों को मिलाकर नाम बना ‘सूमो’. आगे जो हुआ वो इतिहास है, क्योंकि इस गाड़ी ने लॉन्च होने के तीन साल के अंदर ही 1 लाख का आंकड़ा पार कर लिया. हालांकि कंपनी ने साल 2019 में इसका प्रोडक्शन बंद कर दिया, मगर आज भी गाड़ी पहलवान के जैसे सड़कों पर ताकत दिखाती मिल जाती है.
रही बात सुमंत को ‘पहलवान’ कहने की तो वो ऑटो इंडस्ट्री के वाकई में पहलवान ही थे. भारत सरकार ने उनको पद्म भूषण से नवाजा था.