2006 में मुंबई की लोकल ट्रेनों में लगे प्रेशर कुकर बमों की श्रृंखला में लगभग 187 लोगों की मौत हुई थी और 800 से अधिक लोग घायल हुए थे। उस समय इस घटना का जिम्मा लेशकर-ए-तैबा और SIMI जैसे आतंकी संगठनों पर ठहराया गया था।
क्या हुआ अब?
- बॉम्बे हाई कोर्ट ने सभी 12 दोषियों को बरी कर दिया, जिन्होंने 2015 में विशेष अदालत से मौत या आजीवन कारावास की सजा पाई थी।
- अदालत ने स्पष्ट कहा कि अभियोजन पक्ष विश्वसनीय सबूत प्रस्तुत करने में पूरी तरह विफल रहा, गवाहों की पहचान, फॉरेंसिक रिपोर्ट, और TIP (identification parade) की प्रक्रिया संदिग्ध पाई गई।
कुछ अहम सवाल अभी भी बाकी
- क्या बम प्रेशर कुकर में बने थे या सामान्य घर की बर्तनों (household utensils) का इस्तेमाल हुआ?
जांच में इस बात पर विवाद बना हुआ है। - अभियुक्तों पर लगाए गए ताड़ना (टॉर्चर) और स्वीकारोक्ति (कबूलनामे) अदालत ने ख़ारिज कर दिए, क्योंकि न तो मेडिकल रिपोर्ट उनका समर्थन करती थी और न ही कोई ठोस दस्तावेजी सबूत मौजूद था।
राजनीतिक और क़ानूनी प्रतिक्रिया
- महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इसे ‘शॉकिंग’ फैसला बताया और हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का संकेत दिया।
- विपक्षी दलों ने अब तक जांच प्रक्रिया में लगी खामियों और दावे की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठाए हैं।
बॉम्बे हाई कोर्ट का यह निर्णय देश की न्याय प्रणाली में गहराई से हुई जांच की पहचान है।
लेकिन साथ ही यह हमें तथ्यों की पुष्टि, गवाह की विश्वसनीयता और कानूनी प्रक्रिया की पारदर्शिता की अहमियत भी याद दिलाता है, विशेषकर ऐसे बातों में जहाँ भीषण आतंकवादी हमला और सैकड़ों निर्दोष मानव जीवन जुड़ा हो।