आज यानी 16 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा है। धर्म ग्रंथों में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। शरद पूर्णिमा पर चांद पृथ्वी के सबसे नजदीक रहता है और अपनी समस्त 16 कलाओं से युक्त होता है। शारद पूर्णिमा, जिसे कोजागर पूर्णिमा भी कहा जाता है। यह पर्व हर साल हिंदू कैलेंडर के अनुसार अश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। शारद पूर्णिमा का विशेष महत्व है, क्योंकि इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है और विशेष रूप से खीर बनाने की परंपरा है।
इस बार पंचांग भेद और तिथि के घटने और बढ़ने के कारण आश्विन माह की पूर्णिमा अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार दो दिनों तक रहेगी। आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा की तिथि, पूजा शुभ मुहूर्त और महत्व।
तिथि और शुभ मुहूर्त
इस वर्ष तिथियों के घटने और बढ़ने के कारण शरद पूर्णिमा की तिथि दो दिन यानी 16 और 17 अक्तूबर दोनों ही दिन रहेगी। वैदिक पंचांग की गणना के मुताबिक 16 अक्तूबर को आश्विन माह की शरद पूर्णिमा शाम करीब 8 बजे से शुरू हो जाएगी। जो 17 अक्तूबर को शाम करीब 5 बजे तक रहेगी। हालांकि शरद पूर्णिमा का त्योहार रात को ही मनाया जाता है इसलिए यह पर्व 16 अक्तूबर को ही मनाया जाएगा। 17 अक्तूबर को शाम 5 बजे के बाद नया हिंदू माह कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा की शुरुआत हो जाएगी। शरद पूर्णिमा पर चांद निकलने का समय करीब 5 बजे का होगा।
पूजा विधि
शारद पूर्णिमा की पूजा विधि में सबसे पहले घर की सफाई की जाती है। इस दिन सुबह स्नान कर ताजगी के साथ दिन की शुरुआत करनी चाहिए। पूजा स्थान को स्वच्छ करके वहां देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की मूर्तियां या चित्र स्थापित करें। इसके बाद, एक चौकी पर एक सफेद कपड़ा बिछाएं और उस पर देवी लक्ष्मी की प्रतिमा रखें।
1. दीप जलाएं: पूजा के दौरान दीपक जलाना अति महत्वपूर्ण है। यह नकारात्मकता को दूर करने और सकारात्मक ऊर्जा को आमंत्रित करने का कार्य करता है।
2. खीर का भोग: इस दिन खीर बनाने की विशेष परंपरा है। इसे चावल, दूध, चीनी और मेवों से तैयार किया जाता है। खीर को देवी लक्ष्मी को भोग के रूप में अर्पित करें और फिर रात को खुले आसमान के नीचे छोड़ दें। खीर का भोग लगाने से घर में सुख-समृद्धि और समृद्धि का आगमन होता है।
3. धूप-दीप अर्पित करें: पूजा के दौरान धूप और दीप अर्पित करें। देवी लक्ष्मी से धन और समृद्धि की कृपा प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करें।
4. मन्त्र का जाप: पूजा में लक्ष्मी मंत्र का जाप करें: “ॐ श्रीं महालक्ष्मै नमः”। यह मंत्र विशेष रूप से लक्ष्मी देवी को प्रसन्न करने के लिए होता है।
खीर रखने का महत्व
शरद पूर्णिमा का विशेष स्थान होता है। इस दिन खुले आसमान में खीर रखने और फिर इसके बाद अगली सुबह इसके सेवन करने का खास महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी सभी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। शास्त्रों में चंद्रमा की किरणों को अमृत तुल्य माना गया है ऐसे में शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणों से अमृत वर्षा होती है, जिसमें औषधीय गुण मौजूद होते हैं। शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है और अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है। ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा पर चांद की किरणों में औषधीय गुण के कारण कई बीमारियों दूर होती है और मन प्रसन्न होता है।
एक दूसरी मान्यता के अनुसार अनुसार माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था इसीलिए देश के कई हिस्सों में शरद पूर्णिमा को लक्ष्मीजी का पूजन किया जाता है। इसके अलावा ऐसी भी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा पर देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु संग पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और अपने भक्तों से पूछती हैं कौन जाग रहा है। इस वजह से इसे कोजागर पूर्णिमा भी कहते हैं। ऐसे में शरद पूर्णिमा पर पूजा-पाठ करने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। एक अन्य मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा पर भगवान श्रीकृष्ण गोपियों संग वृंदावन में रात को महारास रचाया था।
निष्कर्ष
इस प्रकार, शारद पूर्णिमा एक महत्वपूर्ण और शुभ पर्व है, जो न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह पर्व हमें प्रेम, एकता और समृद्धि का संदेश देता है। इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा करके, खीर का भोग लगाकर और चाँद की रोशनी में उसे रखकर हम अपने जीवन में सुख और समृद्धि को आमंत्रित कर सकते हैं। इस शारद पूर्णिमा पर सभी को शुभकामनाएं!