कैसे होता है भारत में नए मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की नियुक्ति, क्या है सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और राजनीतिक टकराव

कैसे होता है भारत में नए मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की नियुक्ति, क्या है सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और राजनीतिक टकराव
कैसे होता है भारत में नए मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की नियुक्ति, क्या है सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और राजनीतिक टकराव

भारत में चुनाव आयोग की भूमिका लोकतंत्र की नींव मानी जाती है, और इसके प्रमुख अधिकारी, मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC), की नियुक्ति को लेकर लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं। वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के सेवानिवृत्त होने के बाद, उनके उत्तराधिकारी की नियुक्ति को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने बैठक किया। यह बैठक इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यकाल) अधिनियम, 2023 के तहत पहली बार हो रही है। यह अधिनियम संसद द्वारा पारित किए जाने के बाद लागू किया गया था।

हालांकि, इस कानून को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। सुप्रीम कोर्ट में इस अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है, और शीर्ष अदालत 19 फरवरी को इस पर सुनवाई करेगी, जो कि राजीव कुमार के सेवानिवृत्त होने के एक दिन बाद है।

नए कानून से पहले CEC की नियुक्ति कैसे होती थी?

संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार, भारत में चुनाव आयोग के प्रमुख की नियुक्ति राष्ट्रपति के विवेक पर छोड़ दी गई थी, जिसे कार्यपालिका (प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद) की सिफारिशों के आधार पर किया जाता था।

इसका मतलब था कि प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल की सलाह पर राष्ट्रपति CEC और अन्य चुनाव आयुक्तों (EC) की नियुक्ति करते थे। इस प्रक्रिया में कोई स्पष्ट संसदीय कानून नहीं था, जिससे कार्यपालिका को पूरी तरह से नियंत्रण मिलता था।

सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप और 2023 का कानून

मार्च 2023 में, सुप्रीम कोर्ट की पाँच-सदस्यीय संविधान पीठ, जिसकी अध्यक्षता जस्टिस के.एम. जोसेफ कर रहे थे, ने CEC और ECs की नियुक्ति प्रक्रिया की समीक्षा की। अदालत ने कहा कि केवल कार्यपालिका की सलाह पर नियुक्ति होना स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया के सिद्धांतों के खिलाफ है। अदालत ने यह भी कहा कि नियुक्ति प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष बनाया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने एक अस्थायी चयन समिति का गठन करने का आदेश दिया, जिसमें निम्नलिखित तीन सदस्य शामिल थे:

  1. प्रधानमंत्री
  2. लोकसभा में विपक्ष के नेता (LoP)
  3. भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI)

यह प्रक्रिया तब तक लागू रहने वाली थी जब तक संसद इस पर एक नया कानून पारित नहीं कर देती।

CEC/EC अधिनियम

बाद में, संसद ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यकाल) अधिनियम, 2023 पारित किया। इसे पहले राज्यसभा में पेश किया गया और फिर लोकसभा में पारित किया गया।

नए कानून के प्रमुख प्रावधान:

  1. नियुक्ति की प्रक्रिया: राष्ट्रपति को CEC और EC की नियुक्ति चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर करनी होगी।
  2. चयन समिति के सदस्य:
    • प्रधानमंत्री
    • प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय मंत्री
    • लोकसभा में विपक्ष के नेता (या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता)
  3. नामांकन प्रक्रिया:
    • उम्मीदवारों के नाम एक खोज समिति (Search Committee) द्वारा सुझाए जाएंगे, जिसकी अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेंगे।
    • हालांकि, चयन समिति को केवल उन्हीं नामों तक सीमित रहने की बाध्यता नहीं है

इस अधिनियम पर विवाद क्यों हो रहा है?

CJI की भूमिका को हटाने पर आपत्ति

इस अधिनियम में सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई चयन समिति से मुख्य न्यायाधीश (CJI) को हटा दिया गया और उनकी जगह एक कैबिनेट मंत्री को शामिल कर दिया गया।

इस बदलाव पर कई विपक्षी दलों, लोकतंत्र समर्थकों और कानूनी विशेषज्ञों ने कड़ी आलोचना की। उनका तर्क था कि CJI की मौजूदगी से निष्पक्षता बनी रहती, जबकि एक कैबिनेट मंत्री की मौजूदगी से कार्यपालिका का प्रभाव बढ़ेगा।

सरकार ने इस पर जवाब देते हुए कहा कि न्यायपालिका का कार्यपालिका की नियुक्तियों में दखल देना उचित नहीं है और यह संविधान के अनुच्छेद 50 के तहत कार्यपालिका और न्यायपालिका के पृथक्करण के सिद्धांत के खिलाफ है।

SC में चुनौती और कानूनी लड़ाई

जनवरी 2024 में, महिला कांग्रेस महासचिव जया ठाकुर और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस अधिनियम को चुनौती दी। उनका तर्क था कि यह कानून सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक पीठ के निर्णय के खिलाफ है और कार्यपालिका को असीमित शक्ति प्रदान करता है।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए इसे न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, दीपांकर दत्ता और ए.जी. मसीह की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया। इस पर अंतिम सुनवाई 19 फरवरी को होनी थी।

पहली बार नए कानून के तहत नियुक्ति प्रक्रिया

मार्च 2024 में, इस अधिनियम के तहत पहली बार दो चुनाव आयुक्तों – ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू की नियुक्ति की गई। लेकिन यह प्रक्रिया विवादों में आ गई जब उस समय के लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि उन्हें उम्मीदवारों की समीक्षा करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार जल्दबाजी में नियुक्ति कर रही है।

अब, जब मुख्य चुनाव आयुक्त के पद के लिए नियुक्ति होनी है, तो सरकार और विपक्ष के बीच फिर से तनाव देखने को मिल रहा है। विपक्ष का आरोप है कि इस प्रक्रिया में कार्यपालिका को मनमानी शक्ति दी गई है, जिससे चुनाव आयोग की स्वतंत्रता खतरे में पड़ सकती है।

निष्कर्ष

भारत में चुनाव आयोग की निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर लंबे समय से चर्चा होती रही है। नया कानून इस बहस को और गहरा कर रहा है। एक ओर, सरकार का दावा है कि यह एक संवैधानिक प्रक्रिया है जो लोकतांत्रिक प्रणाली को सुदृढ़ करेगी, वहीं विपक्ष और कानूनी विशेषज्ञ इसे कार्यपालिका के बढ़ते नियंत्रण के रूप में देख रहे हैं।

अब सबकी नजरें 19 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर टिकी हैं, क्योंकि यह तय करेगा कि यह कानून जारी रहेगा या इसे असंवैधानिक घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी की बैठक भी महत्वपूर्ण होगी, क्योंकि यह बताएगी कि सरकार और विपक्ष इस प्रक्रिया में कितना तालमेल बिठा सकते हैं।

कुल मिलाकर, यह मामला सिर्फ एक नियुक्ति का नहीं बल्कि भारत में चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और लोकतंत्र की पारदर्शिता का है।

Digikhabar Editorial Team
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