Income Tax Bill 2025: टैक्स के बहाने सरकार करने जा रही है आपकी जासूसी

Income Tax Bill 2025: टैक्स के बहाने सरकार करने जा रही है आपकी जासूसी
Income Tax Bill 2025: टैक्स के बहाने सरकार करने जा रही है आपकी जासूसी

नई दिल्ली: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 13 फरवरी को पेश किए गए नए आयकर विधेयक 2025 ने देश में गहरी चर्चा और विवाद को जन्म दिया है। इस विधेयक में टैक्स अधिकारियों को बिना वारंट के व्यक्तियों की डिजिटल और वित्तीय जानकारी तक पहुंचने की शक्ति दी जा रही है, जिसमें ईमेल, सोशल मीडिया अकाउंट, बैंक विवरण और ट्रेडिंग लेन-देन शामिल हैं। आलोचक इसे सरकार की ओर से एक बड़ा निगरानी ओवररीच मानते हैं, जो नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गोपनीयता के लिए खतरे की घंटी हो सकता है।

यह विधेयक, जो 2025 के केंद्रीय बजट के बाद पेश किया गया, सरकार के कर कानूनों को आधुनिक बनाने की एक व्यापक योजना का हिस्सा है। हालांकि, इसे लेकर विपक्षी दलों और नागरिक अधिकारों के समूहों द्वारा कड़ी आलोचना की जा रही है। इनका कहना है कि इस तरह की शक्तियों से सरकार एक ‘निगरानी राज्य’ की ओर बढ़ सकती है, जो निजी गोपनीयता का उल्लंघन करेगा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को खतरे में डाल सकता है।

कांग्रेस पार्टी की सोशल मीडिया विभाग की प्रमुख सुप्रिया श्रीनेत ने इस विधेयक को सरकार द्वारा अधिकारों का अत्यधिक प्रयोग करने का एक प्रयास बताया है, जिसका इस्तेमाल विरोध को दबाने और विपक्षी आवाजों को नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है। श्रीनेत ने इसे सरकार की एक घातक रणनीति बताया, जो कराधान की आड़ में व्यक्तिगत अधिकारों का हनन करने की कोशिश कर रही है।

विधेयक के एक प्रावधान के अनुसार, टैक्स अधिकारी संदेह होने पर सुरक्षा उपायों को बाइपास करके डिजिटल और भौतिक स्थानों तक पहुंच सकते हैं, यदि उन्हें किसी व्यक्ति की आय या संपत्ति छिपाने का संदेह हो। यह प्रावधान गोपनीयता समर्थकों और कानूनी विशेषज्ञों के लिए बड़ी चिंता का कारण बन गया है, जो मानते हैं कि इस तरह की शक्तियों को उचित सुरक्षा उपायों के बिना लागू करना एक खतरनाक कदम हो सकता है।

इस विधेयक की समीक्षा करने के लिए भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बैजयंत पांडा की अध्यक्षता में 31 सदस्यीय एक चयन समिति गठित की गई है, जो इसकी गोपनीयता पर पड़ने वाले प्रभाव और मौजूदा कानूनी मानदंडों के साथ इसकी संगति की जांच करेगी। हालांकि, यह सवाल उठता है कि क्या यह समिति सचमुच नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने में सक्षम होगी, या सरकार अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए इसे बस एक औपचारिकता के रूप में इस्तेमाल करेगी।

पूर्व इन्फोसिस CFO मोहंदास पाई जैसे प्रमुख व्यक्तियों ने भी इस विधेयक को ‘व्यक्तिगत अधिकारों पर हमला’ करार दिया है। पाई का कहना है कि सरकार को इन शक्तियों का इस्तेमाल सिर्फ कर चोरी रोकने के लिए नहीं करना चाहिए, बल्कि इसे गोपनीयता और नागरिक स्वतंत्रता के दृष्टिकोण से भी देखना चाहिए।

बहरहाल, यह विधेयक अगर लागू होता है, तो यह न केवल कर प्रशासन को प्रभावित करेगा, बल्कि यह नागरिकों की गोपनीयता, स्वतंत्रता और व्यक्तिगत अधिकारों को एक गंभीर खतरे में डाल सकता है। सरकार को इस प्रस्तावित विधेयक के हर पहलू पर पुनर्विचार करना चाहिए और इसे अधिक पारदर्शी और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने वाला बनाना चाहिए।

Digikhabar Editorial Team
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