मेरठ में मानवता शर्मसार: एम्बुलेंस ना मिलने से मरीज की मौत, 2 घंटे तक करता रहा इंतज़ार

मेरठ में मानवता शर्मसार: एम्बुलेंस ना मिलने से मरीज की मौत, 2 घंटे तक करता रहा इंतज़ार
मेरठ में मानवता शर्मसार: एम्बुलेंस ना मिलने से मरीज की मौत, 2 घंटे तक करता रहा इंतज़ार

मेरठ/बागपत: एक औसत परिवार की ज़िन्दगी को लेकर हुए ज़रूरी इंतज़ार ने एक अनहोनी को बुला लिया। टिकरी (बागपत) के 32 वर्षीय मोंटी राठी को पेट में तेज़ दर्द हुआ तो परिवार उसे स्थानीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) लेकर गया। वहाँ डॉक्टर ने कहा कि मोंटी की हालत गंभीर है और उसे करीब 50 km दूर मेरठ के LLR (लाला लाजपत राय) मेडिकल कॉलेज अस्पताल ले जाना ज़रूरी है।

चिकित्सकों की सलाह के बाद परिवार ने तुरंत ‘108’ पर कॉल की, लेकिन सरकारी एम्बुलेंस ड्राइवर ने “एक्स-दूसरे शहर जाने की लिखित अनुमति ना होने” का हवाला देते हुए मना कर दिया। दो घंटे तक गए–आए विभागीय चक्कर और बगैर जवाब के विलंब ने मोंटी को जानलेवा बना दिया। बाद में बागपत CMO को सूचना देने पर एम्बुलेंस भेजी गई, लेकिन इस दौरान मोंटी दम तोड़ चुका था, और वह अस्पताल जाते हुए ही “डेड ऑन अराइवल” घोषित हो गया।

मोंटी के बड़े भाई गौरव राठी ने कहा:

“हम लगभग ढाई घंटे इंतज़ार करते रहे और तब तक मोंटी की जान चली गई। अगर तुरंत एम्बुलेंस आ जाती तो शायद वो बच सकता था।”

इस पूरे मामले को लेकर बागपत CMO डॉ. तीरथ लाल का यह कहना है कि मरीज को CHC में ही डॉक्टर से पूछकर ही अन्य शहर जाने का आदेश ड्राइवर को दिया जाना चाहिए था, और ड्राइवर को लिखित परिचय-पत्र चाहिए होता है।

क्यों हुआ यह संज्ञानहीन भूल?

  • प्रक्रियागत बाधाएँ सरकारी नियमों के हवाले से पलायन का डर समझ आता है, लेकिन जब मरीज की जान दांव पर हो, तो नियम व्यवहारहीन लगते हैं। खरीदारी आधारित स्वास्थ्य मौजूदगी। ‘108’ सेवा की सीमित क्षमता दर्शाती है कि आपात स्थिति के दौरान वह ढंग से काम नहीं कर पाती। नेतृत्व-प्रबंधन की भूमिका
    CMO को शिकायत के बाद कार्रवाई करनी पड़ी, माना कि देर हुई लेकिन कम से कम अंतिम समय में परिवार का दर्द साझा किया गया।
  • सेवाओं में तत्परता की ज़रूरत: आपात स्थिति में समय की मानवीय अहमियत सबसे ऊपर होनी चाहिए।
  • व्यवहारिक लचीलापन: नियमों को इतना कठोर न बनाएं कि ज़िन्दगी दांव पर लग जाए।
  • जवाबदेही: हर एक सरकारी कर्मचारी को जान बचाने की जिम्मेदारी समझनी चाहिए।

यह घटना यह सवाल खड़ा करती है कि क्या भारी इंतज़ार और प्रक्रियागत जटिलताओं के बीच, हमारे स्वास्थ्य तंत्र में मानवता और समय की अहमियत कहीं पीछे तो नहीं छूट रही? इस लेख का उद्देश्य सिर्फ घटना बताए जाना नहीं, बल्कि ज़रूरत और समाधान पर भी सोचने की प्रेरणा देना है।

Digikhabar Team
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