धर्मशाला: तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने एक ऐतिहासिक घोषणा करते हुए स्पष्ट किया है कि उनकी मृत्यु के बाद भी दलाई लामा की परंपरा जारी रहेगी। यह ऐलान तिब्बती बौद्ध अनुयायियों और दुनिया भर में शांति, करुणा और संस्कृति के प्रतीक माने जाने वाले दलाई लामा के समर्थकों के लिए एक बड़ी राहत की खबर है।
अपने 90वें जन्मदिन (6 जुलाई) से कुछ दिन पहले धर्मशाला में आयोजित एक धार्मिक समारोह में वीडियो संदेश के माध्यम से दलाई लामा ने कहा, “पिछले 14 वर्षों में मुझे देश-विदेश से, विशेष रूप से तिब्बती निर्वासित समुदाय, हिमालयी क्षेत्र, मंगोलिया, रूस, चीन और तिब्बत के भीतर से यह परंपरा जारी रखने के लिए कई आग्रह प्राप्त हुए हैं। मैं अब पुष्टि करता हूं कि दलाई लामा की संस्था आगे भी बनी रहेगी।”
उत्तराधिकारी की पहचान का स्पष्ट खाका
उन्होंने बताया कि 24 सितंबर 2011 को जारी उनके बयान में उत्तराधिकारी की पहचान की प्रक्रिया स्पष्ट की गई थी। इसके अनुसार, भविष्य में दलाई लामा की पहचान की जिम्मेदारी केवल ‘गदेन फोडरंग ट्रस्ट’, यानी उनके आधिकारिक कार्यालय की होगी।
इस प्रक्रिया में तिब्बती बौद्ध परंपराओं के प्रमुखों और धर्म रक्षकों की सलाह ली जाएगी और पारंपरिक रीति-नीति के अनुसार ही उत्तराधिकारी की खोज और मान्यता दी जाएगी।
चीन की भूमिका को पूरी तरह नकारा
दलाई लामा ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि इस विषय में चीन सहित किसी भी बाहरी पक्ष की कोई भूमिका नहीं होगी। यह बयान उन आशंकाओं को भी शांत करता है जो हाल के वर्षों में उठी थीं कि चीन अपनी पसंद का ‘दलाई लामा’ घोषित कर तिब्बती समुदाय पर नियंत्रण बढ़ा सकता है।
1959 से निर्वासन में जीवन
दलाई लामा और हजारों तिब्बती 1959 में ल्हासा में चीनी शासन के खिलाफ असफल विद्रोह के बाद भारत आ गए थे। तब से वे धर्मशाला में रहकर तिब्बती समुदाय का नेतृत्व कर रहे हैं। चीन उन्हें “अलगाववादी” कहता है, जबकि दलाई लामा खुद को सिर्फ एक साधारण बौद्ध भिक्षु बताते हैं। यह ऐलान न केवल तिब्बती बौद्ध धर्म की निरंतरता सुनिश्चित करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि दलाई लामा की परंपरा बाहरी राजनीतिक हस्तक्षेप से बची रहेगी। आने वाले समय में, उत्तराधिकारी की पहचान इस मुद्दे का सबसे संवेदनशील पहलू बन सकती है, और आज का यह बयान उसी दिशा में एक निर्णायक कदम माना जा रहा है।