सावन या श्रावण मास, जो उत्तर भारत में 11 जुलाई 2025 से शुरू होकर 9 अगस्त 2025 तक चलता है, भगवान शिव की भक्ति का अत्यधिक पवित्र समय माना जाता है। इस माह में कई लोग विशेष पूजा विधियों जलाभिषेक और रुद्राभिषेक के माध्यम से शिवजी की कृपा प्राप्त करते हैं।
जलाभिषेक क्या है?
जलाभिषेक का अर्थ है शिवलिंग पर पवित्र जल चढ़ाना। यह शिव पूजन का एक मूल अंग है, जिसमें शिवलिंग की ठंडक बनाए रखने हेतु जल अर्पित किया जाता है। साधारण रूप से इसका उद्देश्य शिवलिंग को शीतल और निर्मल बनाना है। तांबे के पात्र में शुद्ध जल या गंगाजल से ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करते हुए जल चढ़ाना इस विधि में शामिल है।
रुद्राभिषेक क्या है?
रुद्राभिषेक शिवलिंग पोषक पंचामृत दूध, दही, शहद, घी और गंगाजल या अन्य द्रव्यों से अभिषेक करने वाली वैदिक पूजा है। इसमें ब्राह्मण मंत्रोच्चारण जैसे ‘रुद्राष्टाध्यायी’ या ‘महमृत्युञ्जय मंत्र’ का प्रयोग होता है। उस दौरान भक्त का पूरा ध्यान शिवजी पर होता है और पूजा विधिवत की जाती है।
सावधानियां जो बनाए रखें
- तुलसी पत्ता कभी भी शिवलिंग पर न चढ़ाएँ क्योंकि यह अशुद्ध माना जाता है।
- पूजा के दौरान मन शांत और एकाग्र होना चाहिए, बातचीत से बचना चाहिए।
- मंत्र उच्चारण सही और स्पष्ट होना चाहिए, गलत उच्चारण पूजा की कृपा कम कर सकता है।
- जल के लिए तांबे के पात्र का प्रयोग लाभदायक माना जाता है।
विशेष समय और लाभ
सावन मास के सोमवार (पहला सोमवार: 14 जुलाई, फिर 21 जुलाई …) और सावन शिवरात्रि (23 जुलाई) एवं नाग पंचमी (29 जुलाई) को रुद्राभिषेक करना अत्यधिक शुभ माना जाता है। इन दिनों पूजा करने से भौतिक और आध्यात्मिक दोनों लाभ मिलते हैं, जसे स्वास्थ्य लाभ, मनोकामना पूर्ति, मानसिक शांति और ग्रह दोष निवारण
सावन के इस पवित्र माह में जलाभिषेक और रुद्राभिषेक दोनों ही शिव जी की आराधना के महत्वपूर्ण तरीके हैं। जहाँ जलाभिषेक सरल और व्यापक रूप से किया जाता है, वहीं रुद्राभिषेक विशेष विधि और सामग्री सहित अधिक शक्तिशाली माना जाता है। भक्त अपनी श्रद्धा व आवश्यकता अनुसार सही विधि का चयन कर मन की शांति और शिव प्रसन्नता प्राप्त कर सकते हैं।