पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर NDA में सीट बंटवारे की तस्वीर आखिरकार साफ हो गई है। सियासी खींचतान, मोलभाव और समझौतों के बीच एनडीए के सभी घटक दलों ने साझा सहमति के आधार पर सीटों का ऐलान कर दिया है। सबसे चौंकाने वाला नाम एलजेपी (रामविलास) प्रमुख चिराग पासवान का है, जिन्हें 29 सीटें दी गई हैं—जबकि उनके पास राज्य में एक भी विधायक नहीं है।
वहीं, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के जीतन राम मांझी और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) के उपेंद्र कुशवाहा को 6-6 सीटें मिली हैं। बीजेपी और जेडीयू दोनों 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। यह पिछली बार से कम है—बीजेपी ने 2020 में 110 और जेडीयू ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा था।
चिराग को मिला इनाम या सियासी दबाव?
एलजेपीआर को 29 सीटें देने को लेकर बीजेपी और जेडीयू दोनों ने बड़ा समझौता किया है। इसके पीछे दो बड़ी वजह मानी जा रही हैं।
पहली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से चिराग की नजदीकी, जिन्हें लंबे समय से ‘मोदी का हनुमान’ कहा जाता है।
दूसरी केंद्र सरकार में एलजेपीआर की हिस्सेदारी, जो एनडीए के चौथे सबसे बड़े सहयोगी के रूप में उभरी है। लोकसभा में उनके 5 सांसद हैं, जो गठबंधन की स्थिरता के लिहाज से अहम माने जा रहे हैं।
बीजेपी के लिए केंद्र की सत्ता प्राथमिकता है, और पार्टी बिहार में सीटें गंवाकर भी एनडीए को एकजुट रखना चाहती है।
2020 का खौफ, जेडीयू की मजबूरी
जेडीयू के लिए चिराग को सीटें देना कड़वी लेकिन ज़रूरी सच्चाई रही। 2020 में जब चिराग की पार्टी एलजेपीआर ने एनडीए से अलग होकर 135 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, तब जेडीयू को जबरदस्त नुकसान हुआ था। जेडीयू 115 सीटों में से सिर्फ 43 सीटें जीत पाई थी। इस बार पार्टी ने वो नुकसान नहीं दोहराने का फैसला लिया और 14 सीटें कम लेकर भी गठबंधन में बनी रही।
मुख्यमंत्री पद का चेहरा नीतीश कुमार होने के कारण जेडीयू ने इसे “सम्मानजनक समझौता” मानते हुए स्वीकार किया।
मांझी को मिली मनपसंद सीटें, कुशवाहा ने भी मानी बात
हम प्रमुख जीतन राम मांझी 15-20 सीटों की मांग कर रहे थे लेकिन उन्हें 6 सीटों पर मनाया गया। उन्हें मनाने के लिए मनपसंद सीटें और केंद्रीय कैबिनेट में कद बढ़ाने का आश्वासन दिया गया। हालांकि मांझी ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि “हमारी ताकत को कम आंका गया है, इसका असर चुनाव परिणामों में दिखेगा।”
उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएम ने 2020 में 99 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। ऐसे में उनके पास विकल्प सीमित थे। इस बार उन्हें 6 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा।
लोकसभा फॉर्मूले से तय हुआ विधानसभा गणित
बताया जा रहा है कि एनडीए ने लोकसभा 2024 के प्रदर्शन को आधार बनाकर विधानसभा की सीटें तय कीं। एक लोकसभा सीट के बदले छह विधानसभा सीटें दी गईं। बीजेपी और जेडीयू ने 17-17 लोकसभा सीटों पर लड़ा था, इस लिहाज से उन्हें 101-101 विधानसभा सीटें दी गईं। एलजेपीआर के पास 5 सांसद हैं, तो उन्हें 29 सीटें मिलीं। हम और आरएलएम ने एक-एक लोकसभा सीट पर लड़ा था, इसलिए उन्हें 6-6 विधानसभा सीटें मिलीं।
गठबंधन की मजबूरी, जीत की रणनीति
बिहार की सियासत में गठबंधन के बिना जीत की संभावना बेहद कम मानी जाती है। यही कारण है कि बीजेपी ने अपनी सीटों की कुर्बानी देकर भी गठबंधन को मजबूत बनाए रखने की रणनीति अपनाई है।
हर दल की अपनी मजबूरी और महत्वाकांक्षा है, लेकिन अंत में सभी ने समझदारी का रास्ता अपनाया ताकि महागठबंधन को टक्कर दी जा सके।
अब देखना यह होगा कि यह सियासी समझौता मैदान में वोट में कैसे तब्दील होता है।