मुंबई: मालेगांव बम धमाका मामले में मुंबई की विशेष एनआईए अदालत ने गुरुवार को सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया है। अदालत के इस फैसले के बाद महाराष्ट्र एटीएस के पूर्व अधिकारी महबूब मुजावर ने एक सनसनीखेज खुलासा किया है। उन्होंने दावा किया है कि जांच के दौरान उन पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का दबाव बनाया गया था। यह आदेश उन्हें मौखिक रूप से वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा दिया गया था, लेकिन उन्होंने इसका पालन नहीं किया क्योंकि उन्हें इसकी सच्चाई का अनुमान था।
पूर्व अधिकारी के इस बयान ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। बीजेपी और संघ से जुड़े नेताओं ने इसे कांग्रेस की सुनियोजित साजिश करार दिया है, जबकि विपक्ष की ओर से अब तक कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है।
फडणवीस का कांग्रेस पर पलटवार
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस शुक्रवार को नागपुर पहुंचे, जहां उन्होंने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के साथ कविकुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय के नए भवन का उद्घाटन किया। इस मौके पर फडणवीस ने मालेगांव केस को लेकर कांग्रेस पर तीखा हमला बोला।
उन्होंने कहा, “तत्कालीन सरकार ने वोटबैंक की राजनीति के तहत ‘हिंदू आतंकवाद’ और ‘भगवा आतंकवाद’ जैसे शब्द गढ़े। अब अदालत के फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि 2008 में रची गई यह साजिश एक राजनीतिक षड्यंत्र थी।”
मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदुत्व से जुड़े लोगों को बदनाम करने की कोशिश की। “अरेस्ट किए गए लोगों के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं था। कई ईमानदार अधिकारियों ने दबाव के बावजूद साफ तौर पर कहा कि हम गैरकानूनी आदेश नहीं मान सकते,” उन्होंने कहा।
केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले की प्रतिक्रिया
केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने मामले पर कहा कि उन्हें इस मामले की पूरी जानकारी नहीं है, लेकिन अगर किसी पुलिस अधिकारी का यह दावा है कि उन्हें मोहन भागवत को लाने का मौखिक आदेश मिला था, तो संभव है कि उन्हें फंसाने की मंशा रही हो। हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि मोहन भागवत का नाम इस मामले में आने का कोई औचित्य नहीं दिखता।
अदालत का फैसला और सामाजिक विमर्श
एनआईए कोर्ट के इस फैसले ने एक बार फिर ‘हिंदू आतंकवाद’ को लेकर उठे पुराने विवादों को नया रूप दे दिया है। सातों आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया है, जिससे अब पूर्ववर्ती सरकारों की भूमिका और निष्पक्षता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
इस पूरे घटनाक्रम के बाद यह स्पष्ट होता जा रहा है कि मालेगांव विस्फोट केस केवल एक आतंकी घटना नहीं, बल्कि राजनीतिक संघर्ष और वैचारिक टकराव का भी हिस्सा बन गया था। अब जब आरोपी बरी हो चुके हैं, इस मामले की निष्पक्ष और गहन समीक्षा की मांग एक बार फिर जोर पकड़ सकती है।