Arunachal Pradesh: आधी रात में 65 KM पैदल सफर कर जिला मुख्यालय पहुंची छात्राएं, जानें क्या हो रहा है अरुणाचल प्रदेश में

Arunachal Pradesh: आधी रात में 65 KM पैदल सफर कर जिला मुख्यालय पहुंची छात्राएं, जानें क्या हो रहा है अरुणाचल प्रदेश में
Arunachal Pradesh: आधी रात में 65 KM पैदल सफर कर जिला मुख्यालय पहुंची छात्राएं, जानें क्या हो रहा है अरुणाचल प्रदेश में

ईटानगर, अरुणाचल प्रदेश: जब नारे सिर्फ दीवारों पर रह जाते हैं और योजनाएं सरकारी फाइलों में उलझकर दम तोड़ देती हैं, तब आवाज़ें सड़कों पर उतरती हैं। अरुणाचल प्रदेश के केसांग जिले के एक छोटे से गांव न्यांग्न्यो की 90 बच्चियों ने वो कर दिखाया, जो शायद ही किसी ने कल्पना की हो। उन्होंने अपने हक—शिक्षा और शिक्षक—के लिए 65 किलोमीटर लंबी रातभर की पदयात्रा कर डाली।

शिक्षा नहीं, इंतजार मिला

ये छात्राएं कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (KGBV) में पढ़ती हैं। यहां न भूगोल का शिक्षक है, न राजनीति विज्ञान पढ़ाने वाला कोई मास्टर। कई बार शिकायत की, आवेदन दिए, लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन मिला। अंत में, जब कोई रास्ता नहीं बचा, तब इन लड़कियों ने अपने हौसले को ही रास्ता बना लिया।

अंधेरी रात, नीली वर्दी और चुप्पी तोड़ती चप्पलें

रविवार की रात को जब अधिकांश लोग नींद के आगोश में थे, तब ये बच्चियां अपनी नीली स्कूल यूनिफॉर्म पहने, हाथों में पोस्टर थामे, न्यांग्न्यो से लेम्मी जिला मुख्यालय की ओर निकल पड़ीं। अंधेरे जंगलों, ऊबड़-खाबड़ रास्तों और ठंडी हवाओं को चीरते हुए उन्होंने 65 किमी की दूरी तय की — बिना शोर-शराबे के, लेकिन अपनी आवाज़ में पूरा आकाश समेटे हुए।

इन बच्चियों के पोस्टर पर लिखा था: “शिक्षक के बिना स्कूल सिर्फ एक इमारत है”

सिस्टम की नींद और सवालों की झड़ी

जब यह मामला वायरल हुआ, तब अफसरों की नींद टूटी। शिक्षा विभाग ने सफाई दी कि उन्हें इस मार्च की जानकारी नहीं थी। स्कूल प्रशासन ने माना कि दो विषयों के शिक्षक नहीं हैं, लेकिन बाकी व्यवस्था ठीक है।

पर क्या इतना कह देना काफी है? सवाल ये है:

  • जब बच्चियां कई बार मांग कर चुकी थीं, तो कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
  • क्या उन अफसरों की जवाबदेही तय की जाएगी जिन्होंने इनकी फरियादों को नजरअंदाज किया?
  • ‘बेटी पढ़ाओ’ सिर्फ नारा है या नीयत भी?

बेटी ने कहा: “हमें डर नहीं, बस पढ़ाई चाहिए”

एक छात्रा ने कहा, “हम डरकर नहीं, सोचकर चले। अगर अब भी नहीं बोलेंगी, तो कब बोलेंगे? हमारे पास वक्त नहीं है इंतजार का।”

ये सिर्फ विरोध नहीं, चेतावनी है

यह मार्च महज़ एक विरोध नहीं, एक चेतावनी है उस व्यवस्था के लिए जो बेटियों को शिक्षा का वादा तो देती है, लेकिन उसे पूरा करने की ईमानदारी नहीं रखती। ये लड़कियां सिर्फ किताबें नहीं मांग रहीं, वे सम्मान, अवसर और अधिकार मांग रही हैं और अब वे खामोश नहीं रहेंगी।

अरुणाचल की इन बेटियों ने दिखा दिया कि शिक्षा की लड़ाई सिर्फ कलम से नहीं, हिम्मत से भी लड़ी जाती है। अब ज़िम्मेदारी प्रशासन की है क्या वो इस साहस का सम्मान करेगा या फिर इन आवाज़ों को फिर से किसी फाइल के नीचे दबा देगा?

Pushpesh Rai
एक विचारशील लेखक, जो समाज की नब्ज को समझता है और उसी के आधार पर शब्दों को पंख देता है। लिखता है वो, केवल किताबों तक ही नहीं, बल्कि इंसानों की कहानियों, उनकी संघर्षों और उनकी उम्मीदों को भी। पढ़ना उसका जुनून है, क्योंकि उसे सिर्फ शब्दों का संसार ही नहीं, बल्कि लोगों की ज़िंदगियों का हर पहलू भी समझने की इच्छा है।