नई दिल्ली: खुद पर लगे गंभीर आरोपों के बावजूद आसाराम को बड़ी राहत मिली है। दिल्ली उच्च न्यायालय की एक डिवीजन बेंच, जिसमें जस्टिस दिनेश मेहता और जस्टिस विनीत कुमार शामिल थे, उन्होंने आसाराम की जमानत याचिका पर फैसला सुनाया। कोर्ट ने आसाराम की अंतरिम जमानत का विस्तार कर दिया, लेकिन वही शर्तें बरकरार रखी जो सुप्रीम कोर्ट ने पहले तय की थीं। इन शर्तों में विशेष रूप से आसाराम के अनुयायियों के साथ उपदेश देने या कोई सभा आयोजित करने पर प्रतिबंध शामिल है।
कोर्ट में 2 अप्रैल को हुई सुनवाई के दौरान आसाराम के वकील निशांत बोरा ने कहा कि उनकी ओर से सोमवार को शपथपत्र प्रस्तुत कर दिया गया था, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया और अंतरिम जमानत का विस्तार जुलाई 1 तक कर दिया।
दूसरी ओर, आसाराम के खिलाफ याचिका दायर करने वाले पी.सी. सोलंकी ने अदालत में आरोप लगाया कि आसाराम ने अपने जमानत शर्तों का उल्लंघन किया है। उन्होंने यह दावा किया कि आसाराम ने इंदौर स्थित अपने आश्रम में अपने अनुयायियों के लिए उपदेश दिए थे। सोलंकी ने इसके समर्थन में वीडियो साक्ष्य भी पेश किया, जिसके बाद अदालत ने आसाराम से शपथपत्र की मांग की।
बता दें कि आसाराम 1 अप्रैल की रात को आत्मसमर्पण करने के बाद एक निजी आयुर्वेद अस्पताल में भर्ती हुए थे। इससे पहले 28 मार्च को गुजरात उच्च न्यायालय ने उन्हें अलग रेप मामले में तीन महीने की अंतरिम जमानत दी थी।
आसाराम की अंतरिम जमानत का विस्तार और अदालत की शर्तों ने एक बार फिर से विवाद को जन्म दे दिया है, खासकर उन सवालों को लेकर जो उनके अनुयायियों के बीच उनकी गतिविधियों पर उठ रहे हैं।