मुंबई: महाराष्ट्र की राजनीति ने एक बार फिर करवट ली है। राज्य के दिग्गज नेता और अनुभवी राजनेता छगन भुजबल ने सोमवार को एक बार फिर मंत्री पद की शपथ ली, जिससे सियासी गलियारों में हलचल मच गई है। यह शपथग्रहण समारोह राज्यपाल की उपस्थिति में हुआ, जिसमें मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और अजित पवार भी मौजूद थे। भुजबल की यह वापसी राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा एक “साइलेंट कमबैक” के रूप में देखी जा रही है।
एक सब्जी विक्रेता से मंत्री तक
15 अक्टूबर 1947 को जन्मे छगन भुजबल का सफर बेहद प्रेरणादायक रहा है। कभी मुंबई के बायकुला मार्केट में सब्जी बेचने वाले भुजबल ने इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लेने के बाद सामाजिक कार्यों के ज़रिये राजनीति में कदम रखा। उनका जीवन संघर्षों और मेहनत की मिसाल रहा है, जिसने उन्हें महाराष्ट्र की राजनीति का मजबूत चेहरा बना दिया।
शिवसेना से लेकर एनसीपी तक का सफर
भुजबल ने 1960 के दशक में शिवसेना के साथ अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की और लगभग 25 वर्षों तक पार्टी के वफादार सिपाही बने रहे। 1985 में वे मझगांव से विधायक बने और लगातार दो बार इस सीट पर जीत हासिल की। लेकिन 1991 में ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर मतभेद के चलते उन्होंने शिवसेना छोड़ दी और कांग्रेस का दामन थाम लिया। 1999 में शरद पवार के साथ मिलकर उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) की स्थापना की और उसी वर्ष राज्य के उपमुख्यमंत्री और गृहमंत्री बनाए गए। वे पीडब्ल्यूडी, खाद्य और नागरिक आपूर्ति तथा उपभोक्ता मामलों जैसे कई अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं।
2024 की नाराजगी, 2025 की वापसी
2024 में हुए मंत्रिमंडल विस्तार में अनदेखी से भुजबल नाखुश हो गए थे और उन्होंने सार्वजनिक रूप से एनसीपी नेता अजित पवार की आलोचना की थी। लेकिन 2025 में महायुति सरकार (भाजपा-शिवसेना-एनसीपी) के एक नए संतुलन में उन्हें फिर से मौका दिया गया है। एनसीपी, जिसने 2024 के विधानसभा चुनाव में 41 सीटें जीती थीं, सरकार की अहम कड़ी बनी हुई है। भुजबल की वापसी न सिर्फ पार्टी के भीतर संतुलन बहाल करती है, बल्कि ओबीसी समुदाय के बीच भी एक सशक्त संदेश देती है।
राजनीतिक संकेत
भुजबल की यह वापसी न केवल व्यक्तिगत प्रतिष्ठा की बहाली है, बल्कि यह महायुति की अंदरूनी राजनीति में बदलते समीकरणों का भी संकेत देती है। वरिष्ठता और अनुभव को पुनः महत्व देना, खासकर चुनावी साल में, एनसीपी और महायुति दोनों के लिए एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है।
छगन भुजबल का यह सियासी पुनरागमन महाराष्ट्र की राजनीति में लंबे समय तक असर डाल सकता है — एक बार फिर उन्होंने यह जता दिया है कि राजनीति में कभी किसी को पूरी तरह से बाहर नहीं लिखा जा सकता।