
बांग्लादेश के माइमेंसिंघ में सदी पुराने फिल्मकार सत्यजीत रे के पारिवारिक घर को ध्वस्त कर नए अर्ध-कंक्रीट भवन के निर्माण की योजना के चलते हाल ही में विवाद छिड़ गया है। इस मामले पर अर्थशास्त्री और इतिहासकार संजीव सांयाल ने सोशल मीडिया पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी है।
सांयाल ने कहा कि “जो लोग रवींद्रनाथ टैगोर के घर के ध्वंस के समय चुप थे, वे आज भी चुप हैं।” उन्होंने इसे बंगाली हिंदू पहचान के व्यवस्थित मिटाने की कोशिश करार दिया। सांयाल ने अपनी पोस्ट में लिखा, “वे टैगोर के घर के तोड़फोड़ पर चुप थे, और सत्यजीत रे के घर के ध्वंस पर भी चुप हैं। यही लोग सबसे पहले चिल्लाएंगे अगर कोई टैगोर का गीत एक सुर गलत गाए।”
यह ध्वंस करीब 10 वर्षों से खाली पड़े इस भवन के कारण बच्चों की सुरक्षा के लिए खतरा माना जा रहा था। भारत ने इस घटना पर अफसोस जताया है और संपत्ति की मरम्मत तथा पुनर्निर्माण में सहायता का प्रस्ताव भी दिया है। भारत सरकार ने कहा है कि “इस भवन का सांस्कृतिक महत्व देखते हुए इसे एक साहित्यिक संग्रहालय और भारत-बांग्लादेश की साझा संस्कृति के प्रतीक के रूप में संरक्षित करने पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए।”
भारत सरकार ने अपने बयान में कहा, “हम इस उद्देश्य के लिए सहयोग प्रदान करने को तत्पर हैं।” 1947 के भारत विभाजन के बाद इस संपत्ति का नियंत्रण बांग्लादेश सरकार के हाथ में चला गया था, जिसे 1989 में माइमेंसिंघ शिशु अकादमी में बदला गया था।
यह पहला मामला नहीं है जब बांग्लादेश में बंगाली सांस्कृतिक विरासत को नुकसान पहुंचाया गया हो। इसी वर्ष 8 जून को नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर के पुश्तैनी घर ‘रवींद्र काछरीबाड़ी’ को भी भीड़ ने तोड़फोड़ किया था। यह घटना तब हुई थी जब एक आगंतुक को मारपीट कर ऑफिस के कमरे में बंद कर दिया गया था।
इस हमले में जमात-ए-इस्लामी और हिफाजत-ए-इस्लाम के सदस्यों का हाथ बताया गया है। भीड़ ने ऑडिटोरियम और निदेशक पर हमला किया था।
बांग्लादेश में बंगाली हिंदू सांस्कृतिक धरोहर को लेकर लगातार विवाद और सुरक्षा की चिंता बनी हुई है। भारत इस मामले को लेकर सतर्कता और सहयोग जारी रखने की नीति पर कायम है।