दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को दिल्ली शाही ईदगाह प्रबंध समिति पर कड़ी फटकार लगाते हुए शाही ईदगाह पार्क के अंदर रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा स्थापित करने पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया।
अपनी टिप्पणियों में न्यायालय ने कहा कि इतिहास को सांप्रदायिक आधार पर नहीं बांटा जाना चाहिए। न्यायालय ने आगे टिप्पणी की कि ‘झांसी की महारानी’ (रानी लक्ष्मीबाई) सभी धार्मिक सीमाओं से परे एक राष्ट्रीय नायक हैं।
न्यायालय ने याचिका को खारिज करते हुए टिप्पणी की “यह निंदनीय है। न्यायालय के माध्यम से सांप्रदायिक राजनीति की जा रही है।”
दिल्ली शाही ईदगाह प्रबंध समिति की याचिका को पहले भी दिल्ली उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश पीठ ने खारिज कर दिया था, जिसके बाद यह न्यायालय की दूसरी पीठ के समक्ष चली गई।
न्यायालय ने ईदगाह समिति की याचिका को विभाजनकारी बताया और कहा कि यह सांप्रदायिक राजनीति कर रही है और इस प्रक्रिया में न्यायालय का उपयोग कर रही है।
न्यायालय ने समिति के खिलाफ निर्णय देने वाले एकल न्यायाधीश के खिलाफ अपील में इस्तेमाल किए गए शब्दों पर भी आपत्ति जताई और कहा कि निंदनीय दलीलें “न्यायाधीश के प्रति अनुचित” हैं।
समिति के वकील ने कहा कि वे याचिका वापस ले रहे हैं, इसलिए अदालत ने उनसे कहा कि वे पहले अपनी याचिका से वे पैराग्राफ हटा दें, जिसमें अपमानजनक दलीलें दी गई थीं और आज तक अदालत के समक्ष माफी भी मांगें।
अदालत मामले पर विचार करेगी और 27 सितंबर को अगली तारीख पर वापसी पर आदेश पारित कर सकती है।
याचिका में समिति ने डीडीए और अन्य को निर्देश देने की मांग की है कि वे दिल्ली के सदर बाजार इलाके में मोतिया खान में शाही ईदगाह पर अतिक्रमण न करें, जिसमें ईदगाह पार्क भी शामिल है, क्योंकि यह वक्फ की संपत्ति है।
उन्होंने मांग की है कि ईदगाह पार्क के अंदर कोई भी मूर्ति या कोई अन्य संरचना स्थापित करने से नगर निगम अधिकारियों को रोका जाए।
अदालत की एकल पीठ ने रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति स्थापित करने का विरोध करने वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उसे नहीं लगता कि किसी भी तरह से उनके प्रार्थना करने या किसी भी धार्मिक अधिकार का पालन करने के अधिकार को खतरे में डाला जा रहा है।