नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा प्रणाली में बड़ा बदलाव करते हुए शुक्रवार को एक घोषणा पत्र (Proclamation) पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत अब विदेशी श्रमिकों को H-1B वीजा पर नियुक्त करने वाली कंपनियों को प्रति कर्मचारी $100,000 (लगभग ₹83 लाख) का वार्षिक शुल्क देना होगा। यह कदम वीजा प्रणाली में सुधार और पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से उठाया गया है।
क्या कहा व्हाइट हाउस और वाणिज्य सचिव ने?
व्हाइट हाउस के स्टाफ सेक्रेटरी विल शार्फ ने इस फैसले को सही ठहराते हुए कहा,
“H-1B वीजा प्रणाली सबसे अधिक दुरुपयोग की जाने वाली वीजा प्रणालियों में से एक है। इस व्यवस्था का उद्देश्य ऐसे क्षेत्रों में काम करने वाले उच्च-कुशल श्रमिकों को अमेरिका लाना है, जहाँ अमेरिकी काम नहीं करते। अब $100,000 का शुल्क यह सुनिश्चित करेगा कि केवल वास्तव में कुशल और अपूरणीय श्रमिक ही लाए जाएं।”
अमेरिका के वाणिज्य सचिव हावर्ड लुटनिक ने कहा,
“अब बड़ी टेक कंपनियां विदेशी श्रमिकों को सस्ता विकल्प मानकर प्रशिक्षण नहीं दे सकेंगी। उन्हें पहले $100,000 सरकार को देना होगा, फिर कर्मचारी को वेतन देना होगा। ऐसे में यह आर्थिक रूप से फायदेमंद नहीं रहेगा। इसका उद्देश्य है – अमेरिकियों को प्रशिक्षित करना, उनकी नौकरियां बचाना।”
H-1B वीजा क्या है?
H-1B वीजा एक गैर-आप्रवासी वीजा है, जो अमेरिकी कंपनियों को विशेषज्ञता रखने वाले विदेशी पेशेवरों को नियुक्त करने की अनुमति देता है। यह वीजा आमतौर पर तकनीकी, विज्ञान, इंजीनियरिंग और गणित जैसे क्षेत्रों में कार्यरत उच्च-कुशल श्रमिकों को दिया जाता है।
हालाँकि, इस प्रणाली की वर्षों से आलोचना होती रही है। आलोचकों का कहना है कि कंपनियाँ इस वीजा का इस्तेमाल सस्ते विदेशी श्रमिकों को नियुक्त करने के लिए करती हैं, जिससे अमेरिकी कर्मचारियों के रोजगार पर असर पड़ता है।
उदाहरण के तौर पर, जहां अमेरिकी टेक कर्मचारी औसतन $100,000 से अधिक कमा सकते हैं, वहीं कई H-1B वीजा धारकों को $60,000 से कम वेतन मिलता है।
ट्रंप की नई नीति में क्या बदलाव हुआ?
- प्रत्येक H-1B वीजा के लिए $100,000 का वार्षिक शुल्क
- केवल वही कंपनियां वीजा ले सकेंगी जिन्हें वास्तव में उच्च-कुशल श्रमिकों की जरूरत है।
- H-1B वीजा अब कम लागत पर एंट्री-लेवल नौकरियों के लिए उपयोग नहीं किया जा सकेगा।
अब तक यह वीजा लॉटरी सिस्टम के जरिए जारी किया जाता था, जिसमें हर साल 85,000 वीजा उपलब्ध होते हैं।
भारत पर क्या असर पड़ेगा?
इस नई नीति का सबसे बड़ा प्रभाव भारतीय पेशेवरों पर पड़ेगा, क्योंकि H-1B वीजा धारकों में 71% भारतीय नागरिक होते हैं। चीन का हिस्सा केवल 11.7% है।
इस नीति के चलते भारतीय इंजीनियरों, IT विशेषज्ञों और अन्य पेशेवरों के लिए अमेरिका में नौकरी पाना और मुश्किल हो सकता है, क्योंकि कंपनियों को अब भारी शुल्क चुकाना होगा।
ट्रंप सरकार की इमिग्रेशन नीति की बड़ी तस्वीर
यह निर्णय ट्रंप प्रशासन की उस नीति का हिस्सा है जिसमें कानूनी इमिग्रेशन को नियंत्रित करना और उससे राजस्व उत्पन्न करना शामिल है। इससे पहले अमेरिका ने पर्यटक और बिजनेस वीजा के लिए $15,000 तक का बांड लगाने की योजना भी शुरू की थी।
ट्रंप सरकार के इस कदम को अमेरिकी नौकरी बाजार को संरक्षित करने की दिशा में एक सख्त नीति माना जा रहा है। हालांकि, इससे अमेरिका में कार्यरत हजारों भारतीयों का भविष्य अधर में आ सकता है और अमेरिका आने की उनकी योजनाओं पर गहरा असर पड़ेगा।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भारतीय सरकार और टेक इंडस्ट्री इस फैसले पर क्या प्रतिक्रिया देती है।