हरतालिका तीज का व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से सौभाग्यवती महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए किया जाता है। अविवाहित कन्याएं भी इस व्रत को उत्तम पति प्राप्ति के लिए करती हैं। यह व्रत शिव-पार्वती की पवित्र कथा पर आधारित है, जिसे हरतालिका तीज व्रत कथा कहा जाता है।
हरतालिका तीज व्रत कथा:
माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनके पिता, हिमालय, उनका विवाह भगवान विष्णु से करवाना चाहते थे, लेकिन पार्वती जी का मन तो भगवान शिव में था। माता पार्वती ने अपने बाल्यकाल से ही भगवान शिव को पति रूप में पाने का संकल्प लिया था।
जब पार्वती जी की तपस्या का समय आ गया, तो उन्होंने कठिन तप शुरू किया। उनके पिता ने यह देखा कि उनकी पुत्री इस तपस्या में लग गई है, लेकिन उन्होंने इसे समझा नहीं और विष्णु जी से विवाह की बात तय कर दी। यह सुनकर पार्वती जी की सखी ने उन्हें इस विवाह से बचाने का उपाय निकाला। वह पार्वती जी को वन में ले गईं, जहाँ पार्वती जी ने कठिन तपस्या शुरू की।
कई वर्षों की कठोर तपस्या के बाद, माता पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न किया। शिव जी उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार कर लिया। इस प्रकार पार्वती जी ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त किया।
इसी दिन को हरतालिका तीज के रूप में मनाया जाता है। यह व्रत न केवल वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाता है, बल्कि अविवाहित लड़कियों के लिए उत्तम जीवनसाथी की प्राप्ति के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
व्रत विधि: हरतालिका तीज के दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं, यानी वे दिनभर जल तक नहीं ग्रहण करतीं। शाम के समय भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की पूजा की जाती है। पूजा में मिट्टी से बने शिवलिंग, पार्वती और गणेश की प्रतिमा का विशेष महत्व होता है। व्रती स्त्रियाँ रातभर जागकर भजन-कीर्तन करती हैं और अगले दिन व्रत का पारण करती हैं। हरतालिका तीज का व्रत कठिन होते हुए भी बहुत फलदायी माना जाता है।