मुंबई: जाने-माने गीतकार, लेखक और सामाजिक विचारक जावेद अख्तर एक बार फिर अपने तेजतर्रार बयान के चलते सुर्खियों में हैं। मुंबई में आयोजित किताब ‘नरकातला स्वर्ग’ के विमोचन समारोह में उन्होंने पाकिस्तान, आतंकवाद, कट्टरपंथ और सांस्कृतिक रिश्तों को लेकर जबरदस्त अंदाज़ में खुलकर बातें कीं, जिसने न सिर्फ श्रोताओं को झकझोरा, बल्कि पूरे देशभर में बहस को हवा दे दी।
“अगर पाकिस्तान और नर्क में चुनना हो, तो मैं नर्क चुनूंगा”
कार्यक्रम के सबसे धमाकेदार क्षण में जावेद अख्तर ने कहा:
“कोई कहता है मैं काफिर हूं और जहन्नुम जाऊंगा, कोई कहता है मैं जिहादी हूं और पाकिस्तान चला जाऊं। तो मैं साफ कर दूं—अगर इन दो में ही चुनना हो, तो मैं जहन्नुम जाना पसंद करूंगा!”
यह बयान सुनते ही पूरा सभागार तालियों की गूंज से भर गया। लेकिन सोशल मीडिया पर इस बयान ने तीखी बहस और प्रतिक्रियाओं का सैलाब भी ला दिया।
“मैं हर विचारधारा से सवाल करता हूं”
अख्तर ने मंच से कहा कि वे किसी राजनीतिक पार्टी से नहीं, बल्कि सच्चाई और आत्मा की आवाज़ के साथ खड़े होते हैं।
“ट्विटर और वॉट्सऐप पर मुझे दाएं और बाएं—दोनों तरफ से गालियां मिलती हैं। यही संतुलन का प्रमाण है।”
आतंकवाद पर सीधी चोट: “जड़ पाकिस्तान में है”
हाल ही में हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और पहलगाम आतंकी हमले का ज़िक्र करते हुए जावेद अख्तर ने पाकिस्तान पर सीधा आरोप लगाया:
“आतंकवादी यूरोप या अफ्रीका से नहीं आते। हमारी सीमा पार से आते हैं और ये कोई नया सच नहीं है।”
उन्होंने वाजपेयी की लाहौर बस यात्रा को याद करते हुए सवाल किया—”भारत ने कितनी बार भरोसा दिखाया, लेकिन पाकिस्तान ने हर बार उसे तोड़ा क्यों?”
“हमें पाकिस्तानी अवाम से नहीं, सेना से है ऐतराज़”
जावेद अख्तर ने पाकिस्तान की आम जनता को लेकर कहा:
“हमें आम पाकिस्तानी नागरिकों से कोई बैर नहीं। वे भी शांति चाहते हैं, लेकिन उन्हें भड़काया जाता है।”
उन्होंने पाक आर्मी चीफ असीम मुनीर द्वारा हिंदुओं पर दिए गए हालिया बयान को
“संवेदनहीन और घृणित” बताया और पूछा, “क्या पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं की कोई गरिमा नहीं?”
पाकिस्तानी कलाकारों पर बैन का समर्थन
सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर भी अख्तर ने बेबाकी से अपनी राय रखी:
“भारतीय कलाकारों ने हमेशा पाकिस्तानी कलाकारों को सम्मान दिया है, लेकिन पाकिस्तान की ओर से ऐसा कोई रवैया देखने को नहीं मिला। जब तक पाकिस्तान अपना रुख नहीं बदलेगा, संवाद मुमकिन नहीं।”
निष्कर्ष
जावेद अख्तर का यह भाषण सिर्फ एक साहित्यिक समारोह का हिस्सा नहीं था—यह एक साफ राजनीतिक और सामाजिक स्टैंड था, जो कट्टरपंथ, आतंकवाद और दोगले रवैये पर सीधा प्रहार करता है।
जैसे ही उनका बयान सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, कुछ ने उन्हें ‘सच्चा देशभक्त’ कहा तो कुछ ने ‘विवाद खड़ा करने वाला’। लेकिन एक बात तय है—जावेद अख्तर चुप रहने वालों में से नहीं हैं, और न ही कोई उन्हें चुप करा सकता है।