IAS officer Ajitabh Sharma के बयान से मची खलबली, “80% समय गैर-जरूरी कामों में जाया होता है

IAS officer Ajitabh Sharma के बयान से मची खलबली,
IAS officer Ajitabh Sharma के बयान से मची खलबली, "80% समय गैर-जरूरी कामों में जाया होता है

नई दिल्ली: राजस्थान के प्रमुख सचिव (ऊर्जा) अजिताभ शर्मा ने भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) की कार्य संस्कृति को लेकर सोशल मीडिया पर एक बेबाक टिप्पणी की है, जिससे नौकरशाही की प्राथमिकताओं और प्रभावशीलता को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। उन्होंने LinkedIn पर एक विस्तृत पोस्ट में लिखा कि एक IAS अधिकारी का 80% से अधिक समय “नॉन-कोर वर्क” यानी गैर-मुख्य कार्यों में खर्च हो जाता है, जिससे असली प्रशासनिक प्रभाव और क्षेत्रीय दक्षता प्रभावित होती है।

नॉन-कोर वर्क पर सवाल

1996 बैच के IAS अधिकारी अजिताभ शर्मा ने बताया कि इस “नॉन-कोर वर्क” में इंटरडिपार्टमेंटल मीटिंग्स, मानव संसाधन प्रबंधन, कानूनी मामलों से निपटना, आरटीआई और पारदर्शिता से जुड़ी जानकारी देना, तथा मीडिया रिपोर्टिंग पर आधारित दस्तावेज तैयार करना शामिल है।

“ये कार्य भले ही जरूरी हों, लेकिन ये उस समय और ऊर्जा को खा जाते हैं जो वास्तव में विभागीय मिशन और नीति निर्माण में लगनी चाहिए,” — अजिताभ शर्मा

IAS प्रणाली की परंपरागत सोच पर सवाल

शर्मा ने प्रशासनिक हलकों में प्रचलित इस धारणा को भी चुनौती दी कि “सभी IAS पद समान रूप से चुनौतीपूर्ण होते हैं”। उन्होंने कहा कि सेवा की जनरलिस्ट प्रकृति के कारण यह मान्यता बनी है, जबकि वास्तव में विभागीय जटिलताएं और अपेक्षाएं अलग-अलग होती हैं।

उन्होंने यह भी लिखा कि प्रशासनिक औपचारिकताओं पर अत्यधिक ध्यान देने से “एक झूठा विशेषज्ञता का भाव” पैदा होता है, जो नवाचार और परिणाम आधारित कार्य संस्कृति की राह में बाधा है।

ऊर्जा विभाग में नए बदलाव की शुरुआत

फिलहाल ऊर्जा विभाग में तैनात शर्मा ने लिखा कि यह विभाग उन क्षेत्रों में से है जहां “कोर वर्क” पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने घोषणा की कि वे पारंपरिक 80:20 अनुपात को उलट देंगे और 80% समय मुख्य कार्यों जैसे कि नीतियों का क्रियान्वयन, सुधार और बुनियादी ढांचे के विकास को देंगे।

“मुख्य कार्यों को प्रभावी ढंग से संभालना ही असल योगदान है—संस्थान और समाज दोनों के लिए,” — अजीताभ शर्मा

व्यापक समर्थन और चर्चा

शर्मा की इस पोस्ट को शासन और लोक नीति क्षेत्रों में व्यापक समर्थन मिल रहा है। कई विशेषज्ञों और पूर्व नौकरशाहों ने इसे “ब्यूरोक्रेसी में बदलाव की ज़रूरत” के रूप में देखा है।

यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब पूरे देश में प्रशासनिक दक्षता, पारदर्शिता और नतीजा आधारित गवर्नेंस को लेकर बहस तेज हो रही है। अजीताभ शर्मा की इस पहल ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अगर प्रशासनिक अधिकारी अपने समय और ऊर्जा को मुख्य कार्यों पर केंद्रित करें, तो वास्तविक परिवर्तन और सुशासन की दिशा में बड़ी छलांग लगाई जा सकती है। अब देखना यह है कि इस विचार को कितने अधिकारी अपनाते हैं और क्या यह सोच व्यवस्था में कोई स्थायी बदलाव ला पाती है।