Jan Nayak Karpoori Thakur: कैसे बने बिहार की राजनीति के समाजवादी प्रतीक, जानिए उनकी विरासत और महत्व

Jan Nayak Karpoori Thakur: कैसे बने बिहार की राजनीति के समाजवादी प्रतीक, जानिए उनकी विरासत और महत्व
Jan Nayak Karpoori Thakur: कैसे बने बिहार की राजनीति के समाजवादी प्रतीक, जानिए उनकी विरासत और महत्व

पटना: बिहार की राजनीति में कर्पूरी ठाकुर का नाम आज भी सामाजिक न्याय और समानता के प्रतीक के रूप में लिया जाता है। समाजवादी विचारधारा से प्रेरित होकर उन्होंने अपने जीवनभर वंचित, पिछड़े और गरीब तबकों के हक के लिए संघर्ष किया। दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर को उनकी नीतियों और ईमानदार छवि के कारण जनता ने ‘जन नायक’ का दर्जा दिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को बिहार में अपने चुनावी अभियान की शुरुआत करते हुए समस्तीपुर के कर्पूरी ग्राम जाएंगे, जहां वे भारत रत्न से सम्मानित समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर को श्रद्धांजलि देंगे और उनके परिवार से मुलाकात करेंगे। एनडीए के लिए यह दौरा बिहार चुनाव अभियान की एक महत्वपूर्ण शुरुआत मानी जा रही है, क्योंकि कर्पूरी ठाकुर का नाम राज्य की राजनीति में गहराई से जुड़ा हुआ है।

सामाजिक न्याय और आरक्षण की नीति

1977 में मुख्यमंत्री के रूप में कर्पूरी ठाकुर ने ऐतिहासिक आरक्षण नीति लागू की, जिसे बाद में “कर्पूरी ठाकुर फॉर्मूला” के नाम से जाना गया। इस नीति के तहत 12 प्रतिशत आरक्षण अति पिछड़ा वर्ग (EBC) को, 8 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग (OBC) को, 3 प्रतिशत महिलाओं को और 3 प्रतिशत आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को दिया गया। यह कदम उस समय सामाजिक न्याय की दिशा में एक क्रांतिकारी पहल थी, जिसने बिहार की सामाजिक-राजनीतिक संरचना को गहराई से प्रभावित किया।

शिक्षा सुधार और शराबबंदी

कर्पूरी ठाकुर ने शिक्षा के क्षेत्र में भी कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उन्होंने मैट्रिक परीक्षा में अंग्रेजी को अनिवार्य विषय से हटाया ताकि ग्रामीण और गरीब तबकों के छात्र आसानी से शिक्षा प्राप्त कर सकें। उन्होंने प्राथमिक और मध्य विद्यालयों में मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था की और पिछड़े इलाकों में नए विद्यालय और कॉलेज खोले। अपने शासनकाल में उन्होंने बिहार में पूर्ण शराबबंदी भी लागू की, जो उनके नैतिक और सामाजिक सुधारवादी दृष्टिकोण को दर्शाती है।

सादगी और समाजवाद की मिसाल

कर्पूरी ठाकुर न केवल समाजवादी राजनीति के प्रतीक थे, बल्कि व्यक्तिगत जीवन में सादगी और ईमानदारी के लिए भी जाने जाते थे। वे पहले गैर-कांग्रेसी समाजवादी मुख्यमंत्री थे जिन्होंने सत्ता को जनसेवा का माध्यम बनाया। उनकी नीतियों का केंद्र हमेशा गरीब, मजदूर, किसान और पिछड़े वर्ग रहे।

भारत रत्न से सम्मानित

भारत सरकार ने कर्पूरी ठाकुर के योगदान को मान्यता देते हुए उन्हें मरणोपरांत 23 जनवरी 2024 को भारत रत्न से सम्मानित किया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने यह घोषणा उनके जन्मशताब्दी वर्ष की पूर्व संध्या पर की थी। यह सम्मान न केवल एक व्यक्ति की उपलब्धियों का, बल्कि सामाजिक न्याय के उस आदर्श का भी प्रतीक है जिसे कर्पूरी ठाकुर ने जीवनभर जिया।

आज भी बिहार की राजनीति में ‘जन नायक’ कर्पूरी ठाकुर की विरासत जीवित है। राज्य के विभिन्न राजनीतिक दल उनके आदर्शों और समाजवादी दृष्टिकोण को अपने राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बनाते हैं। उनके विचार और नीतियाँ बिहार की सामाजिक संरचना और राजनीति के केंद्र में बनी हुई हैं।

Pushpesh Rai
एक विचारशील लेखक, जो समाज की नब्ज को समझता है और उसी के आधार पर शब्दों को पंख देता है। लिखता है वो, केवल किताबों तक ही नहीं, बल्कि इंसानों की कहानियों, उनकी संघर्षों और उनकी उम्मीदों को भी। पढ़ना उसका जुनून है, क्योंकि उसे सिर्फ शब्दों का संसार ही नहीं, बल्कि लोगों की ज़िंदगियों का हर पहलू भी समझने की इच्छा है।