
नई दिल्ली: देश की सबसे बड़ी भ्रष्टाचार निरोधक संस्था लोकपाल ने सात बीएमडब्ल्यू कारों की खरीद का टेंडर जारी किया है, और ये खबर सुनते ही लोगों में गुस्सा और हैरानी दोनों पैदा हो गई है। ऐसी संस्था, जिसे भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता की उम्मीदों के नाम पर बनाया गया था, अब खुद लग्जरी कारों में उलझी दिख रही है। और सवाल उठता है क्या यही है वो लोकपाल जो 9,000 से ज्यादा लंबित मामलों में सिर्फ 7 का निपटान कर पाया?
भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाली संस्था अब पांच करोड़ रुपये की लग्जरी कारें खरीदने की तैयारी में है। यह वही लोकपाल है, जिसे मोदी सरकार ने इतना कमजोर कर दिया कि उसके सदस्य न भ्रष्टाचार की चिंता करते हैं और न जनता की। देश पूछ रहा है, जब जनता के पैसे और उम्मीदों की बात है, तो क्या यह लोकपाल सिर्फ सत्ता और विलासिता के लिए बना है?
कांग्रेस और सोशल एक्टिविस्ट्स का कहना है कि यह कदम सिर्फ दिखावा और फिजूलखर्ची है। प्रशांत भूषण ने भी तंज कसते हुए कहा कि मोदी सरकार ने लोकपाल को “धूल में मिला दिया” और अब उसके चुने हुए सदस्य सिर्फ आराम और सुख-सुविधाओं में मग्न हैं।
लोकपाल का नाम भ्रष्टाचार के खिलाफ आखिरी प्रहरी के रूप में लिया जाता था, लेकिन अब वही संस्था जनता की आँखों में सिर्फ विलासिता का प्रतीक बनकर रह गई है। 9,000 केस लंबित हैं, लेकिन सात BMW कारें मंगाई जा रही हैं। जनता पूछ रही है क्या यही देश की सेवा है या सिर्फ सत्ता का खेल?
टीएमसी सांसद सागरिका घोष ने भी कहा कि यह न सिर्फ लोकपाल की छवि बल्कि लोकतंत्र की साख पर भी चोट है। भ्रष्टाचार की जांच की बजाय यह संस्था खुद विलासिता में डूबी हुई है। देश की जनता अब तर्क कर रही है अगर यही लोकपाल की प्राथमिकता है, तो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई कहाँ जाएगी?
लोकपाल का यह कदम केवल एक संस्थागत घोटाला नहीं, बल्कि जनता की उम्मीदों के साथ धोखा है। और बीजेपी सरकार इस मामले में चुप रहकर स्पष्ट कर रही है कि जनता के पैसे से विलासिता ही उनकी प्राथमिकता है।










