अभिनंदन को पकड़ने का दावा करने वाले अफसर मेजर मोइज़ अब्बास शाह की TTP से मुठभेड़ में मौत

अभिनंदन को पकड़ने का दावा करने वाले अफसर मेजर मोइज़ अब्बास शाह की TTP से मुठभेड़ में मौत
अभिनंदन को पकड़ने का दावा करने वाले अफसर मेजर मोइज़ अब्बास शाह की TTP से मुठभेड़ में मौत

नई दिल्ली/इस्लामाबाद: पाकिस्तानी सेना के मेजर मोइज़ अब्बास शाह, जो 2019 में बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान की गिरफ्तारी का दावा करने के चलते सुर्खियों में आए थे, की दक्षिण वज़ीरिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के साथ मुठभेड़ में मौत हो गई है।

37 वर्षीय मेजर शाह पाकिस्तान की विशेष सेवा समूह (SSG) के सदस्य थे और चकवाल के निवासी थे। सेना के अनुसार, वे एक आतंकवाद विरोधी अभियान का नेतृत्व कर रहे थे जब यह मुठभेड़ हुई। इस संघर्ष में एक और जवान, लांस नायक जिबरानुल्लाह भी शहीद हुए।

मेजर शाह 2019 में तब चर्चा में आए थे जब भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर था। पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत ने बालाकोट में एयरस्ट्राइक की थी। इसके जवाब में हुए हवाई संघर्ष के दौरान विंग कमांडर अभिनंदन का मिग-21 विमान पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र में गिरा था और उन्हें पाकिस्तानी सेना ने पकड़ लिया था। शाह ने उस समय दावा किया था कि उन्होंने अभिनंदन को पकड़ने में भूमिका निभाई थी।

पाकिस्तान और TTP के बीच बढ़ता संघर्ष

टीटीपी की स्थापना 2007 में इस्लामाबाद की लाल मस्जिद पर पाकिस्तानी सेना की कार्रवाई के बाद हुई थी। यह संगठन अब पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है।

टीटीपी के मौजूदा प्रमुख नूर वली महसूद और अन्य कई नेता पहले जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-झंगवी जैसे कट्टरपंथी संगठनों से प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं। इन संगठनों को कभी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का समर्थन भी मिला था।

हाल के वर्षों में टीटीपी ने अपने हमलों में तेजी लाई है। केवल 2025 में अब तक 116 पाकिस्तानी सैनिक टीटीपी के हमलों में मारे जा चुके हैं। 2024 में यह संख्या 1,200 से अधिक थी, जो पाकिस्तान के लिए एक गंभीर चुनौती का संकेत है।

टीटीपी न केवल सुरक्षाबलों को निशाना बना रही है, बल्कि पाकिस्तान की शिया आबादी के खिलाफ भी हिंसा को बढ़ावा दे रही है, जिससे देश में सांप्रदायिक तनाव और अधिक गहराता जा रहा है।

मेजर मोइज़ अब्बास शाह की मौत न केवल पाकिस्तान के लिए एक सैन्य क्षति है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि जिन कट्टरपंथी ताकतों को पहले कभी सहयोग या अनदेखा किया गया था, वे अब खुद पाकिस्तान के अस्तित्व के लिए संकट बन चुकी हैं।