नई दिल्ली: सावन मास में आने वाला नाग पंचमी का पर्व इस वर्ष 29 जुलाई 2025 (मंगलवार) को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाएगा। इस दिन नाग देवता की पूजा के साथ-साथ भगवान शिव की भी विशेष आराधना की जाती है। मान्यता है कि नाग पंचमी पर शिवलिंग की विधिपूर्वक पूजा करने और कुछ विशेष वस्तुएं अर्पित करने से कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और स्थिरता आती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अगर शिवलिंग पर सही चीजें अर्पित की जाएं तो भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं। आइए जानते हैं इस नाग पंचमी पर आपको कौन-कौन सी वस्तुएं शिवलिंग पर अर्पित करनी चाहिए:
1. कच्चा दूध – कालसर्प दोष होगा दूर
नाग पंचमी के दिन शिवलिंग पर कच्चा दूध अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इससे कुंडली में विद्यमान कालसर्प दोष का प्रभाव कम होता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
2. धतूरा – रोगों से मिलेगा छुटकारा
धतूरा भगवान शिव का प्रिय पुष्प है। इसे नाग पंचमी पर शिवलिंग पर चढ़ाने से शारीरिक कष्टों और रोगों से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा, यह आर्थिक मजबूती लाने में भी सहायक होता है।
3. काले तिल – नकारात्मकता होगी दूर
पानी में मिलाकर काले तिल शिवलिंग पर अर्पित करने से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं। कालसर्प दोष से छुटकारा मिलता है और मन में शांति आती है।
4. बेलपत्र – शिव होंगे शीघ्र प्रसन्न
शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाना सबसे पुण्यदायी माना गया है। इससे न केवल कालसर्प दोष शांत होता है, बल्कि पारिवारिक सुख, मानसिक शांति और मनोकामना पूर्ति भी होती है।
5. अक्षत – जीवन में आएगी समृद्धि
शिवलिंग पर साफ-सुथरे अक्षत (साबुत चावल) अर्पित करने से जीवन में समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा आती है। यह भगवान शिव को प्रसन्न करने का सरल और प्रभावी उपाय है।
6. चंदन – मानसिक स्थिरता और पारिवारिक शांति के लिए
चंदन का लेप शिवलिंग पर लगाने से मन को शांति और जीवन में स्थिरता मिलती है। इससे घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और मानसिक तनाव कम होता है।
नाग पंचमी का यह शुभ पर्व धार्मिक आस्था, आध्यात्मिक ऊर्जा और शिव भक्ति का प्रतीक है। इस दिन इन विशेष वस्तुओं से भगवान शिव का अभिषेक कर आप उनके विशेष आशीर्वाद के पात्र बन सकते हैं। कालसर्प दोष से मुक्ति के साथ-साथ, मानसिक, आर्थिक और पारिवारिक समस्याओं में भी राहत मिल सकती है।
(Disclaimer: यह लेख धार्मिक मान्यताओं और लोक परंपराओं पर आधारित है। इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इसे श्रद्धा और आस्था के भाव से पढ़ें।)