
कोलकाता: कलकत्ता हाई कोर्ट ने ऑपरेशन सिंदूर विवादित पोस्ट मामले में गिरफ्तार 22 वर्षीय सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर और कानून की छात्रा शार्मिष्ठा पनोली को अंतरिम जमानत दे दी है। पनोली को 30 मई को गुरुग्राम से गिरफ्तार किया गया था, जिसके बाद उन्हें कोलकाता की एक अदालत ने 13 जून तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।
हाई कोर्ट ने अपनी अंतरिम राहत के तहत कई शर्तें भी लागू की हैं। पनोली को बिना मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (CJM) की अनुमति के देश छोड़ने पर रोक लगा दी गई है। इसके साथ ही उन्हें 10,000 रुपये की राशि भी अदालत में जमा करनी होगी।
सुरक्षा को लेकर कोलकाता पुलिस को निर्देश
हाई कोर्ट ने कोलकाता पुलिस को पनोली की ओर से दाखिल उस याचिका पर तत्काल कार्रवाई करने के भी निर्देश दिए हैं, जिसमें उन्होंने अपनी सुरक्षा को लेकर खतरे की आशंका जताई थी। यह याचिका उन्होंने अपनी गिरफ्तारी से पहले दाखिल की थी।
पिता ने लगाया झूठी जानकारी फैलाने का आरोप
इससे पहले, पनोली के पिता पृथ्वीराज पनोली ने कोलकाता पुलिस पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा था कि उनकी बेटी फरार नहीं थी, जैसा कि पुलिस ने अदालत में कहा था। उन्होंने बताया कि वे और शार्मिष्ठा दोनों ही 15 मई को लालबाजार स्थित कोलकाता पुलिस मुख्यालय और आनंदपुर थाने गए थे। इसके बावजूद, पुलिस ने उन्हें फरार घोषित कर गिरफ्तारी वारंट हासिल कर लिया। पृथ्वीराज पनोली ने कोलकाता पुलिस पर झूठी और भ्रामक जानकारी फैलाने का आरोप लगाया और अपनी बात के समर्थन में दो “विज़िटर स्लिप” भी प्रस्तुत कीं, जो 15 मई की तारीख की थीं और जिनमें पिता-पुत्री दोनों के नाम और तस्वीरें दर्ज थीं।
विवादित वीडियो हटाया, माफी भी मांगी
शार्मिष्ठा पनोली, जो पुणे की एक चौथे वर्ष की कानून की छात्रा हैं, ने विवाद बढ़ने के बाद न सिर्फ अपना वीडियो डिलीट कर दिया बल्कि एक बिना शर्त माफी भी जारी की थी। हालांकि, तब तक देश के कई हिस्सों में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुकी थीं। बाद में कलकत्ता हाई कोर्ट ने इन सभी एफआईआर को मिलाकर एक ही केस के तहत कोलकाता में जांच करने का आदेश दिया। गौरतलब है कि मंगलवार को हाई कोर्ट ने पनोली को अंतरिम जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था कि “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता निरंकुश नहीं है” और इसका उपयोग किसी की धार्मिक भावनाएं आहत करने के लिए नहीं किया जा सकता।
आगे की सुनवाई
अगली सुनवाई में अदालत द्वारा दी गई अंतरिम जमानत की अवधि, जांच की स्थिति और आरोपों की गंभीरता के आधार पर फैसला लिया जाएगा कि पनोली को स्थायी राहत मिलेगी या नहीं। यह मामला अब न केवल सोशल मीडिया की जिम्मेदारी पर सवाल उठा रहा है, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक सहिष्णुता के बीच संतुलन की बहस को भी एक बार फिर जीवित कर गया है।