नई दिल्ली/इम्फाल। मणिपुर में लंबे समय से जारी जातीय हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संभावित यात्रा से पहले राज्य में राजनीतिक गतिविधियां तेज़ हो गई हैं। सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री सितंबर के दूसरे सप्ताह में इम्फाल और चुराचांदपुर का दौरा कर सकते हैं — यह उनकी पहली यात्रा होगी जब से मई 2023 में राज्य में जातीय हिंसा भड़की थी।
मणिपुर के गृह विभाग ने 30 अगस्त को एक सर्कुलर जारी करते हुए 7 से 14 सितंबर के बीच सभी पुलिसकर्मियों की छुट्टियों पर रोक लगा दी है। इस आदेश को “कर्तव्यों की आवश्यकताओं” के तहत जारी किया गया है, लेकिन एक वरिष्ठ अधिकारी ने पुष्टि की है कि यह कदम प्रधानमंत्री मोदी की प्रस्तावित यात्रा को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है।
जातीय संघर्ष की पृष्ठभूमि में पहली यात्रा
प्रधानमंत्री की यह यात्रा इसलिए भी अहम मानी जा रही है क्योंकि मई 2023 से मणिपुर में कुकी-जो और मेइती समुदायों के बीच लगातार टकराव चल रहा है। अब तक 260 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और 60,000 से अधिक लोग राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं।
हालांकि, यात्रा की सफलता दो प्रमुख शर्तों पर टिकी हुई है:
- कुकी-जो उग्रवादी संगठनों के साथ Suspension of Operations (SoO) समझौते पर सहमति
- राज्य में एक नई सरकार का गठन
नए SoO समझौते की उम्मीद
यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट (UPF) और कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन (KNO) के सूत्रों ने बताया कि गृह मंत्रालय ने 3 सितंबर को उन्हें बातचीत के लिए बुलाया है, ताकि नया SoO समझौता किया जा सके। यह समझौता पहली बार 2008 में हुआ था, और इसे हर साल नवीनीकृत किया जाता रहा है।
2023 में जब इम्फाल में केंद्र और कुकी गुटों के बीच राजनीतिक समझौते की कोशिश हो रही थी, उसी दौरान हिंसा भड़क गई और बातचीत टूट गई। तब से कुकी-जो संगठनों की “अलग प्रशासन” की मांग लगातार बनी हुई है, जिसे मेइती समुदाय कड़े रूप से खारिज कर रहा है।
2025 में केंद्र सरकार ने कुकी-जो गुटों के साथ फिर से वार्ता शुरू की है, लेकिन मेइती संगठनों का विरोध बरकरार है। उनका आरोप है कि कुकी गुटों ने SoO समझौते के नियमों का उल्लंघन किया है और इसीलिए समझौते को तुरंत समाप्त किया जाना चाहिए।
क्या मणिपुर को नई सरकार मिलेगी?
राज्य में राष्ट्रपति शासन फरवरी 2025 से लागू है। पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने 9 फरवरी को इस्तीफा दे दिया था, जब हिंसा को लेकर उनकी भूमिका पर सवाल उठे। इसके बाद एक ऑडियो टेप सामने आया, जिसमें कथित रूप से उनकी आवाज थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में उस टेप की जांच के लिए उसे गांधीनगर स्थित राष्ट्रीय फॉरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय (NFSU) भेजने का निर्देश दिया है।
हालांकि बीजेपी के पास 60 में से 44 विधायकों का समर्थन होने का दावा है, लेकिन यह समर्थन औपचारिक रूप से सामने नहीं आया है। पार्टी के अंदर ही मुख्यमंत्री पद को लेकर गहरा मतभेद बना हुआ है। बीरेन सिंह गुट जहां नए चुनावों की मांग कर रहा है, वहीं केंद्रीय नेतृत्व किसी नए चेहरे को सामने लाने पर विचार कर रहा है — जिससे बीरेन सिंह की स्थिति खतरे में पड़ सकती है।
एक पार्टी सूत्र ने Digi Khabar को बताया, “पार्टी के सभी गुटों को संतुष्ट करना और सरकार बनाना इस समय एक बड़ी चुनौती है। बीरेन सिंह गुट नहीं चाहता कि कोई नया मुख्यमंत्री चुना जाए, इसलिए वे नए चुनाव की वकालत कर रहे हैं।”
अंदरूनी बगावत और असहमति
बीजेपी के ही 10 कुकी विधायक, जिनमें से 7 बीजेपी से ही हैं, ने बीरेन सिंह की हिंसा को संभालने की शैली की खुलकर आलोचना की है और पार्टी से दूरी बना ली है। इससे पार्टी की अंदरूनी स्थिति और भी जटिल हो गई है। शीर्ष नेताओं को फिलहाल मीडिया से बात करने पर रोक दी गई है।
प्रधानमंत्री मोदी की मणिपुर यात्रा यदि होती है, तो यह प्रतीकात्मक रूप से एक “निर्णायक हस्तक्षेप” के रूप में पेश की जाएगी, एक कोशिश जिससे राज्य में शांति बहाल हो और सरकार का गठन हो सके। लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि सामुदायिक विभाजन, राजनीतिक असहमति और भरोसे की कमी ने राज्य को गहराई से अस्थिर कर दिया है।
अगले कुछ सप्ताह मणिपुर की राजनीति के लिए निर्णायक साबित हो सकते हैं — क्या केंद्र सरकार कुकी गुटों के साथ समझौता करती है? क्या नया मुख्यमंत्री चुना जाएगा या नए चुनाव होंगे? इन सवालों के जवाब आने वाले दिनों में मिल सकते हैं।