नई दिल्ली: आज भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 34वीं पुण्यतिथि है। 21 मई, 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक आत्मघाती हमले में उनकी हत्या कर दी गई थी। यह केवल एक हत्या नहीं थी, बल्कि एक सुनियोजित साजिश थी, जिसकी जड़ें भारत और श्रीलंका के बीच के तनावपूर्ण संबंधों में छिपी थीं।
राजनीति में आकस्मिक प्रवेश और सबसे युवा प्रधानमंत्री
राजीव गांधी ने राजनीति में कदम तब रखा जब उनकी मां और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या 1984 में हुई। मात्र 40 वर्ष की उम्र में वे भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री बने। शांत स्वभाव और तकनीकी सोच वाले राजीव ने भारत को 21वीं सदी की ओर ले जाने का सपना देखा था।
LTTE और भारत के संबंधों में बदलाव
तमिल विद्रोही संगठन ‘लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम’ (LTTE) की स्थापना 1976 में प्रभाकरण ने की थी। शुरूआत में भारत ने तमिलों की मदद के लिए कुछ समर्थन दिया, लेकिन 1987 में भारत-श्रीलंका समझौते के बाद हालात बदले।
राजीव गांधी ने शांति बनाए रखने के लिए IPKF (Indian Peace Keeping Force) को श्रीलंका भेजा, जिससे एलटीटीई नाराज हो गया। उन्होंने भारतीय सेना को विदेशी हस्तक्षेप के रूप में देखा और इसका विरोध करना शुरू कर दिया।
LTTE की नाराजगी और हत्या की साजिश
1989 में सत्ता से बाहर होने के बाद भी राजीव गांधी एक प्रभावशाली नेता बने रहे। 1991 में चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने एक बयान में संकेत दिया था कि वे फिर से श्रीलंका में सेना भेजने पर विचार कर सकते हैं। एलटीटीई ने इसे अपने अस्तित्व पर खतरा माना और उनकी हत्या की योजना बनाई।
21 मई 1991: वह काली रात
राजीव गांधी तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक चुनावी सभा को संबोधित करने पहुँचे थे। ‘गायत्री’ नाम की महिला आत्मघाती हमलावर बनी और जैसे ही उसने उन्हें माला पहनाई, विस्फोट कर दिया। इस हमले में राजीव गांधी सहित 14 लोगों की जान चली गई। यह हमला न केवल एक व्यक्ति पर था, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की पीठ में एक गहरा वार था।
स्मरण और सीख
आज, जब देश राजीव गांधी को याद करता है, तो यह केवल एक नेता की पुण्यतिथि नहीं, बल्कि उस दौर की याद भी है जब राजनीति, आतंक और राष्ट्रहित की टकराहट ने इतिहास की दिशा बदल दी थी। राजीव गांधी का बलिदान आज भी युवाओं के लिए एक प्रेरणा है कि देश सेवा केवल पद नहीं, बल्कि कर्तव्य का नाम है।