ईरान और खाड़ी देशों के रिश्ते, दोस्ती की चादर के नीचे छुपे अविश्वास के कांटे

ईरान और खाड़ी देशों के रिश्ते, दोस्ती की चादर के नीचे छुपे अविश्वास के कांटे
ईरान और खाड़ी देशों के रिश्ते, दोस्ती की चादर के नीचे छुपे अविश्वास के कांटे

नई दिल्ली: पश्चिमी एशिया के केंद्र में स्थित ईरान, अपनी रणनीतिक स्थिति, तेल-गैस संसाधनों और धार्मिक पहचान के चलते लंबे समय से खाड़ी क्षेत्र की राजनीति में एक प्रभावशाली खिलाड़ी रहा है। इसके पड़ोसी खाड़ी देशों सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), कतर, कुवैत, बहरीन और ओमान के साथ ईरान के रिश्ते जटिल रहे हैं। ये संबंध कभी धार्मिक टकराव, कभी राजनीतिक अविश्वास, तो कभी आर्थिक सहयोग के चलते बनते-बिगड़ते रहे हैं।

सऊदी अरब: क्षेत्रीय वर्चस्व की लड़ाई

ईरान और सऊदी अरब के बीच लंबे समय से तनावपूर्ण रिश्ते हैं। दोनों देश इस्लामिक दुनिया में नेतृत्व के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं—ईरान शिया विचारधारा, जबकि सऊदी अरब सुन्नी पंथ का झंडाबरदार है। 2016 में एक शिया धर्मगुरु की फांसी और ईरान में सऊदी दूतावास पर हमले के बाद रिश्ते पूरी तरह टूट गए थे। हालांकि, 2023 में चीन की मध्यस्थता से रिश्तों की बहाली की कोशिश हुई है, लेकिन अविश्वास की खाई अब भी गहरी है।

UAE: व्यापारिक साझेदारी लेकिन रणनीतिक अविश्वास

संयुक्त अरब अमीरात और ईरान के बीच अरबों डॉलर का व्यापार होता है, विशेषकर दुबई के माध्यम से। लेकिन परमाणु कार्यक्रम और तीन विवादित द्वीपों (अबू मूसा, ग्रेटर तुन्ब, लेसर तुन्ब) को लेकर दोनों देशों के बीच अविश्वास कायम है। UAE, अमेरिका और सऊदी अरब के करीब है, इसलिए रणनीतिक मुद्दों पर वह ईरान से दूरी बनाए रखता है।

कुवैत: संतुलन की नीति अपनाता देश

कुवैत, ईरान से ना बहुत करीबी रिश्ता रखता है और ना खुलकर विरोध करता है। वह क्षेत्रीय संकटों से दूर रहना पसंद करता है। कुवैत में शिया आबादी होने के कारण सांस्कृतिक जुड़ाव है, लेकिन सऊदी और अमेरिका के साथ गठबंधन उसे ईरान के प्रति सतर्क बनाता है। कुवैत कई बार मध्यस्थ की भूमिका निभाने की कोशिश कर चुका है।

इराक: धर्म ने जोड़ा, राजनीति ने जटिल बनाया

ईरान और इराक दोनों शिया बहुल देश हैं। 1980-88 के इरान-इराक युद्ध के बाद रिश्तों में सुधार हुआ, खासकर सद्दाम हुसैन के पतन के बाद। आज दोनों देशों के बीच आर्थिक, सैन्य और धार्मिक सहयोग है। ईरान इराक की सरकार और शिया मिलिशियाओं पर असर रखता है, जिससे उसे क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में बढ़त मिलती है। हालांकि, इराक की संप्रभुता को लेकर कई बार सवाल उठते हैं।

कतर: सबसे दोस्ताना लेकिन अब संकट में

कतर के साथ ईरान के रिश्ते अब तक खाड़ी देशों में सबसे अच्छे रहे हैं। दोनों देश साउथ पार्स/नॉर्थ डोम गैस क्षेत्र साझा करते हैं और 2017 में जब कतर का बहिष्कार हुआ, तब ईरान ने उसकी मदद की। लेकिन हाल ही में कतर स्थित अमेरिकी एयरबेस पर ईरान द्वारा मिसाइल हमले के बाद हालात बदल सकते हैं। अब देखना होगा कि दोस्ती का यह रिश्ता नए संकट को कैसे झेलता है।

बहरीन: सबसे खराब संबंध

ईरान और बहरीन के रिश्ते बेहद तनावपूर्ण हैं। शिया बहुल आबादी और सुन्नी सत्ता के बीच की खाई, और ईरान पर आंतरिक हस्तक्षेप के आरोप, दोनों देशों को बार-बार टकराव की ओर ले जाते हैं। बहरीन ईरान को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मानता है और अमेरिका-सऊदी अरब के साथ खुला समर्थन करता है।

ओमान: भरोसेमंद लेकिन तटस्थ साझेदार

ओमान ईरान के साथ तटस्थ और मैत्रीपूर्ण रिश्ते रखता है। उसने कई बार ईरान और पश्चिमी देशों के बीच मध्यस्थता की है, विशेष रूप से 2015 के परमाणु समझौते में। ओमान की नीति है क्षेत्रीय शांति को बढ़ावा देना, और इसी के कारण वह ना तो ईरान का विरोध करता है और ना सऊदी गठबंधन में गहराई से शामिल होता है।

निष्कर्ष: टकराव से बचाव, लेकिन आशंका बरकरार

ईरान और खाड़ी देशों के रिश्तों में कोई एक समानता नहीं है। धार्मिक मतभेद, सुरक्षा चिंताएं और बाहरी प्रभाव (जैसे अमेरिका और चीन) इन रिश्तों को लगातार प्रभावित करते हैं। जहां एक ओर व्यापार और ऊर्जा साझेदारी देशों को करीब लाने की कोशिश करती है, वहीं राजनीतिक वर्चस्व की होड़ और सैन्य टकराव संबंधों को खतरे में डालती है। मौजूदा ईरान-इज़राइल तनाव, अमेरिका की भूमिका और क्षेत्रीय स्थिरता को लेकर चिंता — ये सभी पहलू आने वाले समय में इन रिश्तों की दिशा तय करेंगे। अभी जो संतुलन नजर आता है, वह बहुत नाजुक है।