
मॉस्को/सेंट पीटर्सबर्ग: कैंसर के इलाज की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि सामने आई है। रूस ने घोषणा की है कि उसकी नई mRNA-आधारित कैंसर वैक्सीन ‘एंटरोमिक्स’ (Enteromix) ने पहले चरण के मानव परीक्षणों में 100% प्रभावशीलता और पूर्ण सुरक्षा का प्रदर्शन किया है। यह घोषणा सेंट पीटर्सबर्ग अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मंच 2025 के दौरान की गई, जिससे चिकित्सा विज्ञान के वैश्विक मंच पर हलचल मच गई है।
कैसे काम करती है एंटरोमिक्स वैक्सीन?
इस वैक्सीन को उसी mRNA तकनीक से विकसित किया गया है, जो COVID-19 के टीकों में इस्तेमाल की गई थी। लेकिन यह सामान्य कैंसर टीका नहीं है — एंटरोमिक्स एक पूरी तरह से व्यक्तिगत (personalized) उपचार है, जो हर कोलोरेक्टल कैंसर (आंत और मलाशय का कैंसर) मरीज के ट्यूमर प्रोफाइल के अनुसार तैयार किया जाता है।
वैक्सीन शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली को प्रशिक्षित करती है ताकि वह विशेष कैंसर कोशिकाओं को पहचानकर उन्हें नष्ट कर सके, जिससे कीमोथेरेपी जैसे पारंपरिक इलाजों की आक्रामकता और दुष्प्रभावों से बचा जा सके।
परीक्षणों में उल्लेखनीय सफलता
रूस के नेशनल मेडिकल रिसर्च रेडियोलॉजिकल सेंटर और एंगेलहार्ड इंस्टीट्यूट ऑफ मॉलिक्युलर बायोलॉजी द्वारा संयुक्त रूप से किए गए पहले मानव परीक्षणों में कुल 48 स्वयंसेवकों को शामिल किया गया। नतीजे बेहद उत्साहजनक रहे —
- हर मरीज में ट्यूमर का आकार घटा,
- किसी भी मरीज में कोई गंभीर दुष्प्रभाव नहीं देखा गया।
अब अगला कदम – मंजूरी और व्यापक परीक्षण
अब रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय से वैक्सीन को मंजूरी मिलने की प्रक्रिया शुरू होने वाली है। यदि बड़े पैमाने पर किए जाने वाले परीक्षणों में भी यह वैक्सीन उतनी ही कारगर और सुरक्षित साबित होती है, तो यह ऑन्कोलॉजी की दुनिया में एक क्रांतिकारी मोड़ साबित हो सकती है।
भारत के लिए क्या मायने हैं इस खोज के?
भारत में कोलोरेक्टल कैंसर के मामलों की संख्या बढ़ रही है, खासकर शहरी इलाकों में, और इलाज की पहुंच में असमानता अब भी बड़ी चुनौती बनी हुई है। ऐसे में अगर एंटरोमिक्स जैसे व्यक्तिगत टीके वैश्विक स्तर पर उपलब्ध होते हैं, और भारत में नियामक मंजूरी मिलती है, तो यह उन लाखों मरीजों के लिए नई उम्मीद बन सकता है जिन्हें अभी तक महंगे और दर्दनाक इलाजों से गुजरना पड़ता है।
वैज्ञानिक समुदाय की प्रतिक्रिया
दुनियाभर के कैंसर विशेषज्ञ इस शोध पर नजर बनाए हुए हैं। हालांकि शुरुआती नतीजे प्रेरणादायक हैं, परंतु बड़े पैमाने पर और विविध जनसंख्या में किए गए परीक्षणों की सफलता ही यह तय करेगी कि एंटरोमिक्स सच में कैंसर के खिलाफ लड़ाई में एक निर्णायक हथियार बन सकता है या नहीं।