
नई दिल्ली: 11 जुलाई से पवित्र सावन माह की शुरुआत के साथ ही शिवभक्तों की आस्था और श्रद्धा से भरी कांवड़ यात्रा का भी विधिवत शुभारंभ हो गया है। लाखों श्रद्धालु अपने कंधों पर गंगाजल लेकर “बोल बम” के जयकारों के साथ भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए पैदल यात्रा पर निकल चुके हैं। यह यात्रा 23 जुलाई तक चलेगी।
सावन की शुरुआत और कांवड़ यात्रा का आरंभ
हिंदू पंचांग के अनुसार, सावन माह कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि आज तड़के 2:06 बजे से प्रारंभ हुई। इसी के साथ उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों से कांवड़िए हरिद्वार, गंगोत्री, गौमुख और अन्य पवित्र स्थलों से गंगाजल लेकर अपने-अपने गंतव्यों की ओर रवाना हो गए हैं।
कांवड़ यात्रा की अवधि
यह धार्मिक यात्रा 11 जुलाई से 23 जुलाई तक चलेगी। वहीं सावन मास का समापन इस बार 9 अगस्त, शनिवार को होगा।
पौराणिक मान्यता: रावण थे पहले कांवड़िए
कांवड़ यात्रा की शुरुआत को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय निकले हलाहल विष को जब भगवान शिव ने ग्रहण किया, तो उनके शरीर में अत्यधिक जलन होने लगी। तब देवताओं ने उन्हें शांत करने के लिए पवित्र नदियों के जल से उनका अभिषेक किया। तभी से सावन माह में शिवजी को जल चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हुई।
एक अन्य कथा के अनुसार, लंका के राजा रावण को पहला कांवड़िया माना जाता है। रावण ने ही सबसे पहले सावन मास में गंगाजल लाकर शिवलिंग का अभिषेक किया था। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे आशीर्वाद भी दिया।
कांवड़ यात्रा का धार्मिक महत्व
कांवड़ यात्रा को शिवभक्ति की चरम अभिव्यक्ति माना जाता है। मान्यता है कि गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करने से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को भय, रोग, शोक, पाप और दरिद्रता से मुक्ति प्रदान करते हैं। यह यात्रा मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग भी बताई जाती है।
कांवड़िए भगवान शिव के परम भक्त माने जाते हैं और यह यात्रा श्रद्धा, सेवा और संयम की एक जीवंत मिसाल होती है।
देशभर में श्रद्धा और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम
देश के विभिन्न राज्यों में प्रशासन ने कांवड़ यात्रा के सुचारू संचालन के लिए व्यापक सुरक्षा और यातायात प्रबंधन की व्यवस्था की है। चिकित्सा, जल और विश्राम की सुविधाओं के साथ-साथ जगह-जगह भंडारों और सेवा शिविरों की भी व्यवस्था की गई है।
सावन के पवित्र माह में शुरू हुई कांवड़ यात्रा शिवभक्तों की आस्था, समर्पण और तपस्या की प्रतीक है। जैसे-जैसे यात्रा आगे बढ़ेगी, “बोल बम” के गगनभेदी जयकारों से संपूर्ण वातावरण शिवमय हो उठेगा।