सुप्रीम कोर्ट ने कान-व्रत यात्रा के मार्ग पर स्थित ढाबों, रेस्टोरेंट और होटलों को निर्देश दिया है कि वे अपनी वैध लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन प्रमाणपत्र सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करें। हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि वह QR कोड को लेकर यूपी सरकार के निर्देश में फ़िलहाल हस्तक्षेप नहीं करेगा।
क्या है विवादित मुद्दा?
- QR कोड सरकारी आदेश के अनुसार यात्रियों को स्कैन करने पर मालिक का नाम, पहचान और मेन्यू आदि जानकारी मिल सकती है। आलोचकों का कहना है कि इससे गोपनीयता और धार्मिक आधार पर भेदभाव हो सकता है।
- साल 2024 में इसी तरह के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने पिछली बार रोक लगा दी थी, जिसमें ढाबा मालिकों को अपना नाम आदि बाहर प्रदर्शित करने से रोका गया था।
Supreme Court क्यों चुप रहा QR कोड पर?
कोर्ट ने कहा कि चूंकि यात्रा समाप्ति के आख़िरी दिन हैं, इसलिए फिलहाल केवल लाइसेंस प्रदर्शित करने का आदेश ही जारी किया गया है। QR कोड के मुद्दे पर कोर्ट का कहना है कि उस पर निर्णय आगे सुनवाई के बाद ही होगा।
क्या कहना सही है, ग्राहक का अधिकार?
SC ने संकेत दिया है कि ग्राहकों को यह जानने का अधिकार है अगर कोई रेस्टोरेंट सफ़ेद झंडे पर ‘pure veg’ दिखाता है लेकिन मूलतः non-veg भी बनाता है। कोर्ट ने कहा कि ग्राहकों का विश्वास बने, लेकिन QR कोड में मालिक की धार्मिक पहचान जैसी जानकारी शामिल हो तो वह समस्या हो सकती है।
- सुप्रीम कोर्ट ने विधिक लाइसेंस जानकारी तो अनिवार्य की, पर QR कोड विवाद में फिलहाल कदम पीछे रखा।
- यह फैसला यात्रियों की सुरक्षा और गोपनीयता, दोनों का संतुलन बनाने की कोशिश है।
- आगे इसका अंतिम फैसला आने वाले सप्ताह में सुनवाई के बाद ही होगा, जहां गोपनीयता अधिकार और यात्रियों की विश्वास दो बड़े पक्ष होंगे।