वाशिंगटन/नई दिल्ली: दुनिया की सबसे ताक़तवर और तकनीकी रूप से उन्नत मानी जाने वाली अमेरिकी वायुसेना इन दिनों दो सबसे महंगे और अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों की तकनीकी खामियों को लेकर असहज स्थिति में नजर आ रही है। एक ओर ब्रिटिश एयरफोर्स का F-35B फाइटर जेट भारतीय राज्य केरल में 14 जून को आपात लैंडिंग के बाद 11 दिनों से उड़ान भरने में असमर्थ है, वहीं दूसरी ओर अमेरिका का स्टील्थ बॉम्बर B-2 स्पिरिट एक बार फिर तकनीकी खराबी के चलते हवाई (होनोलुलु) एयरपोर्ट पर आपात लैंडिंग के लिए मजबूर हुआ।
रणनीति में आया तकनीकी ब्रेकडाउन
21 जून को B-2 बॉम्बर एक “डिकॉय मिशन” (छलावा मिशन) पर था, जिसका उद्देश्य ईरान जैसे दुश्मनों को गुमराह करना था। इस योजना के तहत B-2 विमानों को टैंकर विमानों के साथ जानबूझकर प्रशांत क्षेत्र में भेजा गया था, ताकि दुश्मन भ्रमित हो जाए और हमले की दिशा के बारे में गलत अंदाज़ा लगाए।
लेकिन रणनीतिक भ्रम की इस योजना को तकनीकी खराबी ने पटरी से उतार दिया, जब एक B-2 को होनोलुलु एयरपोर्ट पर इमरजेंसी में लैंड कराना पड़ा।
2023 में भी हुआ था ऐसा ही हादसा
चौंकाने वाली बात यह है कि इसी एयरपोर्ट पर 2023 में भी एक B-2 बॉम्बर को आपात स्थिति में उतारा गया था, जो कई महीनों तक वहां खड़ा रहा और महंगी मरम्मत का इंतजार करता रहा। अब एक बार फिर से ऐसी ही स्थिति दोहराए जाने से अमेरिकी वायुसेना की रखरखाव क्षमताओं और विमान बेड़े की उम्र पर सवाल उठने लगे हैं।
B-2: महंगा, सीमित और ऑपरेशनल दबाव में
B-2 स्पिरिट को 1980 के दशक में विकसित किया गया था। इसे एक “लो डेंसिटी, हाई वैल्यू एसेट” माना जाता है। फिलहाल सिर्फ 19 B-2 बॉम्बर ही अमेरिका के पास ऑपरेशनल हैं, और हर एक विमान की कीमत अरबों डॉलर में है। इसकी जटिलता और उच्च रखरखाव लागत अमेरिकी रक्षा बजट पर भारी दबाव डाल रही है।
इसी वजह से अमेरिका अब B-21 रेडर, अगली पीढ़ी के स्टील्थ बॉम्बर, की ओर तेजी से बढ़ रहा है, जो B-2 की जगह लेने के लिए तैयार किया जा रहा है।
F-35B: भारत में फंसा “फ्लैगशिप फाइटर”
दूसरी ओर, ब्रिटेन की रॉयल एयरफोर्स का F-35B, जो अमेरिका की सबसे आधुनिक लड़ाकू विमान श्रेणी में आता है, 14 जून को केरल में आपातकालीन लैंडिंग के बाद से उड़ान नहीं भर सका है। 11 दिन बाद भी तकनीकी टीम उसे उड़ाने में सफल नहीं हो पाई है, जिससे विमान की विश्वसनीयता और तत्काल मिशन क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं।
तकनीकी ताकत बनाम जमीनी सच्चाई
इन दोनों घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सिर्फ तकनीकी श्रेष्ठता ही सैन्य सफलता की गारंटी नहीं है। अत्याधुनिक उपकरणों के साथ-साथ विश्वसनीय रखरखाव प्रणाली, कुशल योजना और त्वरित रिस्पॉन्स भी आवश्यक हैं।
इन घटनाओं ने अमेरिका जैसे तकनीकी महाशक्ति को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या उसकी वायुसेना वाकई किसी दीर्घकालिक संघर्ष के लिए पूरी तरह तैयार है?
दुनिया के सबसे महंगे विमानों की बार-बार तकनीकी विफलताएं यह संकेत हैं कि भविष्य की लड़ाइयों में तकनीक से ज़्यादा भरोसेमंद ढांचा और निरंतर तैयारियां निर्णायक साबित होंगी। अमेरिका के लिए यह समय है आत्मनिरीक्षण का क्योंकि तकनीक के दम पर जीती जा सकने वाली लड़ाइयों में तकनीक का गिरना, सबसे बड़ा खतरा बन सकता है।