ओडिशा की घटना पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी प्रतिक्रिया: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हम शर्मिंदा हैं’, क्या है पूरा मामला

ओडिशा की घटना पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी प्रतिक्रिया: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'हम शर्मिंदा हैं', क्या है पूरा मामला
ओडिशा की घटना पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी प्रतिक्रिया: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'हम शर्मिंदा हैं', क्या है पूरा मामला

नई दिल्ली: ओडिशा के पुरी ज़िले में 15 वर्षीय नाबालिग लड़की को कथित तौर पर तीन अज्ञात व्यक्तियों द्वारा जिंदा जलाए जाने की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस घटना पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गहरी नाराज़गी व्यक्त करते हुए कहा कि देश को अब सबसे कमजोर वर्गों की सुरक्षा के लिए ठोस और दीर्घकालिक कदम उठाने होंगे।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने कहा, “हम शर्मिंदा हैं। दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसी घटनाएं आज भी हो रही हैं। यह कोई विरोधात्मक मुकदमा नहीं है। हम केंद्र सरकार और सभी संबंधित पक्षों से सुझाव चाहते हैं कि आखिर कौन से ठोस कदम उठाए जा सकते हैं, ताकि जो आवाज़हीन और कमजोर हैं, उन्हें सशक्त बनाया जा सके।”

पुरी की घटना से पहले बालासोर की छात्रा की आत्महत्या

यह मामला तब सामने आया जब ओडिशा के बालासोर जिले में एक 20 वर्षीय कॉलेज छात्रा ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाकर आत्मदाह कर लिया था। उसका आरोप था कि एक कॉलेज प्रोफेसर ने उसके साथ शारीरिक शोषण किया। अभी यह मामला शांत भी नहीं हुआ था कि पुरी में 15 वर्षीय नाबालिग पर पेट्रोल डालकर आग लगा दी गई, जिससे देशभर में आक्रोश फैल गया।

सुप्रीम कोर्ट ने मांगे केंद्र से सुझाव

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि उसके निर्देशों का जमीनी स्तर पर असर दिखना चाहिए, और महिलाओं, विशेष रूप से विद्यालयी छात्राओं, गृहिणियों और ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों तक जागरूकता एवं सशक्तिकरण अभियान पहुंचना चाहिए।

महिला वकील संघ की याचिका पर सुनवाई

यह मामला सुप्रीम कोर्ट महिला वकील संघ द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई के दौरान उठा। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता महालक्ष्मी पावनी ने कहा कि ऐसी ही दर्दनाक घटनाएं हाल के दिनों में महाराष्ट्र और तमिलनाडु में भी हुई हैं। उन्होंने कहा, “यह सिलसिला आखिर कब तक चलेगा? अदालत को महिलाओं की सुरक्षा के लिए हस्तक्षेप करना ही होगा।”

केंद्र ने बताए उठाए गए कदम

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने अदालत को बताया कि केंद्र सरकार सार्वजनिक स्थानों पर CCTV कैमरे और फेसियल रिकग्निशन सिस्टम स्थापित कर रही है ताकि यौन अपराधियों की पहचान हो सके। साथ ही देश के हर जिले में वन-स्टॉप क्राइसेस सेंटर (महिला सहायता केंद्र) शुरू किए जा चुके हैं।

हालांकि, अदालत ने कहा कि ऐसे केंद्र सिर्फ ज़िलों तक सीमित नहीं रहने चाहिए, बल्कि उन्हें तालुका स्तर तक पहुंचाना चाहिए ताकि ग्रामीण और दूर-दराज़ की महिलाओं को भी सहायता मिल सके।

अगली सुनवाई अगले सप्ताह

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने यह भी टिप्पणी की कि केंद्र सरकार का हलफनामा अब तक रिकॉर्ड पर नहीं आया है, और मामले की अगली सुनवाई अगले सप्ताह के लिए सूचीबद्ध की।

देश में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ लगातार हो रही यौन हिंसा की घटनाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट का यह हस्तक्षेप एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि केवल कागज़ी योजनाओं से नहीं, बल्कि स्थानीय स्तर तक ठोस कार्यान्वयन से ही बदलाव संभव है। अब देखने वाली बात होगी कि क्या केंद्र और राज्य सरकारें इस दिशा में मिलकर कोई सार्थक पहल करेंगी या फिर यह भी बाकी मामलों की तरह अदालतों की फाइलों तक सीमित रह जाएगा।