काठमांडू: नेपाल में चल रही सियासी अनिश्चितता के बीच अंततः अंतरिम प्रधानमंत्री के नाम पर सस्पेंस खत्म हो गया है। सुप्रीम कोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को नेपाल की अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया है। राष्ट्रपति कार्यालय और सेना प्रमुख ने उनके नाम को स्वीकृति दे दी है। कार्की आगामी चुनाव तक सरकार का नेतृत्व करेंगी।
गुरुवार देर रात काठमांडू में राष्ट्रपति, सेना प्रमुख और सुशीला कार्की के बीच एक अहम बैठक हुई, जिसके बाद यह निर्णय लिया गया। बताया जा रहा है कि यह फैसला उस स्थिति में लिया गया जब युवा आंदोलनकारी समूह “Gen Z” ने सेना को अंतिम चेतावनी दी थी कि अगर सुशीला कार्की को प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया तो वे उग्र कदम उठाएंगे।
विरोध के बीच बनी सहमति
हालांकि कार्की का नाम पहले से ही चर्चा में था, लेकिन देश के कुछ वर्गों में उनके खिलाफ विरोध की भी आवाजें उठी थीं। आलोचकों का कहना था कि उनके कार्यकाल में कई बार विवाद उठे और वे पूर्व में महाभियोग का भी सामना कर चुकी हैं, ऐसे में उन्हें कार्यकारी प्रधानमंत्री बनाना उचित नहीं होगा।
इसके बावजूद बुधवार को हुई अहम बैठकों में युवा वर्ग और सामाजिक संगठनों ने उनके नाम पर समर्थन जताया। वहीं, काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह ने भी खुलकर सुशीला कार्की के नाम का समर्थन किया।
कौन हैं सुशीला कार्की?
सुशीला कार्की का जन्म नेपाल के एक ग्रामीण क्षेत्र में हुआ था। उनके पिता एक किसान थे। उन्होंने स्नातक की पढ़ाई महेंद्र मोरंग कैंपस से की और फिर भारत के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर किया।
कुछ समय शिक्षण कार्य करने के बाद उन्होंने 1980 में कानून की पढ़ाई शुरू की और मानवाधिकार जैसे मामलों में सक्रिय रूप से वकालत की। वर्ष 2009 में उन्हें नेपाल सुप्रीम कोर्ट में एडहॉक जज नियुक्त किया गया और 2010 में परमानेंट जज बना दिया गया।
2016 में वे नेपाल की पहली महिला चीफ जस्टिस बनीं। हालांकि, 2017 में उनके खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव भी लाया गया था, जो अंततः खारिज हो गया।
संवैधानिक पेच और अनिवार्यता का सिद्धांत
नेपाल के संविधान के अनुसार, पूर्व मुख्य न्यायाधीश को राजनीतिक पद नहीं दिया जा सकता। लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में “अनिवार्यता के सिद्धांत” के तहत यह निर्णय लिया गया है। इस सिद्धांत के तहत किसी असंवैधानिक कदम को भी वैध ठहराया जा सकता है यदि वह देश की सुरक्षा, कानून-व्यवस्था या आपात स्थिति में आवश्यक हो।
इस विषय पर राष्ट्रपति और सेना प्रमुख ने नेपाल के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश प्रकाश मान सिंह राउत से भी सलाह-मशविरा किया था।
अंतिम दौर में कई नाम थे चर्चा में
अंतरिम प्रधानमंत्री पद की दौड़ में इंजीनियर कुलमान घीसिंग और काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह जैसे युवा चेहरे भी प्रमुख दावेदार थे। “Gen Z” आंदोलन के नेताओं ने पहले सुशीला कार्की का नाम आगे बढ़ाया, लेकिन कुछ विरोध के चलते कुलमान घीसिंग का नाम भी चर्चा में आया था। हालांकि अंततः सर्वसम्मति से सुशीला कार्की के नाम पर मुहर लगाई गई।
नेपाल की राजनीति एक बार फिर संक्रमण काल से गुजर रही है, और ऐसे में देश को स्थिरता की आवश्यकता है। सुशीला कार्की के पास न्यायपालिका का लंबा अनुभव है, और अब वे कार्यपालिका की कमान संभालने जा रही हैं। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती चुनाव प्रक्रिया को निष्पक्ष और शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न कराना तथा राजनीतिक संतुलन बनाए रखना होगा।
नेपाल में नई उम्मीद और अस्थायी नेतृत्व की शुरुआत हो चुकी है, अब देखना होगा कि सुशीला कार्की इस जिम्मेदारी को किस तरह निभाती हैं।













