
धर्मशाला एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय ध्यान का केंद्र बनने जा रहा है। यहां जब तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा अपना 91वां जन्मदिन मनाएंगे, तो माना जा रहा है कि वे अपने उत्तराधिकारी को लेकर कोई अहम घोषणा कर सकते हैं। यह केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से भी बेहद संवेदनशील मुद्दा बन चुका है — खासकर चीन की दखलअंदाज़ी के चलते।
पुनर्जन्म पर आधारित है दलाई लामा का चयन
तिब्बती बौद्ध धर्म में दलाई लामा का चयन पुनर्जन्म की परंपरा पर आधारित होता है। मौजूदा दलाई लामा का जन्म 1935 में हुआ था और मात्र दो वर्ष की आयु में उन्हें 13वें दलाई लामा का पुनर्जन्म माना गया। परंपरा के अनुसार, दलाई लामा की मृत्यु के बाद खोजी दल विशेष परीक्षणों के आधार पर नए पुनर्जन्म की पहचान करता है।
चीन और निर्वासित सरकार के बीच टकराव
लेकिन अब इस आध्यात्मिक प्रक्रिया में राजनीति की जटिलताएं आ जुड़ी हैं। तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद, बीजिंग यह दावा करता रहा है कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन में उसका अधिकार है। वहीं, धर्मशाला स्थित तिब्बती निर्वासित सरकार और दुनिया भर के तिब्बती इस हस्तक्षेप को खारिज करते हैं।
अगला दलाई लामा चीन के बाहर?
हाल ही में दलाई लामा की किताब “वॉयस फॉर द वॉइसलेस” में उन्होंने संकेत दिया कि अगला दलाई लामा चीन के बाहर जन्म लेगा। उन्होंने यह भी कहा कि उत्तराधिकारी कोई बच्चा हो या वयस्क, लड़का हो या लड़की — यह फैसला तिब्बती परंपरा और समुदाय की सहमति से ही लिया जाएगा।
भारत, अमेरिका और वैश्विक नजर
भारत, जहां करीब 1 लाख तिब्बती रहते हैं, इस मुद्दे पर सतर्क है। दलाई लामा धर्मशाला में 1959 से रह रहे हैं, जब माओत्से तुंग की अगुवाई में तिब्बत पर चीन का कब्जा हुआ था। अमेरिका भी लगातार तिब्बती मानवाधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता की पैरवी करता रहा है। राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी तिब्बत की स्वायत्तता का समर्थन किया है।
भविष्य की राह
दलाई लामा के बाद गादेन फोडरंग फाउंडेशन उनकी उत्तराधिकार प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगा। तब तक निर्वासित तिब्बती सरकार धर्मशाला से नेतृत्व की भूमिका निभाती रहेगी।
इस बार का जन्मदिन केवल उत्सव नहीं, बल्कि तिब्बती समुदाय के भविष्य की दिशा तय करने वाला एक ऐतिहासिक क्षण हो सकता है — और दुनिया की निगाहें धर्मशाला पर टिकी हैं।