नई दिल्ली/ओस्लो: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को इस साल के नोबेल शांति पुरस्कार 2025 के लिए एक बार फिर मायूस होना पड़ा है। तमाम अटकलों और उनके दावों के बावजूद नोबेल शांति पुरस्कार इस बार वेनेजुएला की लोकतंत्र समर्थक नेता मारिया कोरिना मचाडो को दिया गया है। मचाडो को यह सम्मान वेनेजुएला में लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा और तानाशाही से मुक्ति के लिए उनके संघर्ष के लिए मिला है।
नोबेल समिति ने शुक्रवार को आधिकारिक रूप से इस साल के विजेता की घोषणा की, जिसके बाद ट्रंप के दावों पर विराम लग गया। ट्रंप लंबे समय से यह दावा करते रहे हैं कि उन्होंने आठ अंतरराष्ट्रीय संघर्षों को रोका है, और इसके चलते वे नोबेल के पात्र हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इन दावों की सच्चाई संदिग्ध है।
गाज़ा संघर्ष विराम का नहीं पड़ा असर
हाल ही में इज़राइल और हमास के बीच गाज़ा संघर्ष विराम की मध्यस्थता में ट्रंप की भूमिका को लेकर भी काफी चर्चा थी। लेकिन नोबेल समिति के सदस्यों ने पहले ही सोमवार को अंतिम बैठक में विजेता तय कर लिया था, जिससे स्पष्ट हो गया कि गाज़ा डील का इस वर्ष के पुरस्कार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
शांति पुरस्कार विशेषज्ञ एस्ले स्वेन ने एएफपी को बताया कि ट्रंप की गाजा पहल का “इस फैसले से कोई लेना-देना नहीं है” और यह तय है कि “ट्रंप इस साल पुरस्कार नहीं जीतेंगे।”
ट्रंप की नीतियों पर सवाल
ओस्लो पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट की निदेशक नीना ग्रेगर ने भी ट्रंप की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि उनकी “अमेरिका फर्स्ट” नीति नोबेल के मूल आदर्शों के खिलाफ जाती है। उन्होंने कहा कि ट्रंप ने न केवल अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय सहयोग से दूर किया, बल्कि उन्होंने कई बहुपक्षीय संधियों से भी खुद को अलग कर लिया।
उनकी आक्रामक विदेश नीति, डेनमार्क से ग्रीनलैंड खरीदने की धमकी, अमेरिकी शहरों में सेना की तैनाती, और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले जैसे कई कदम नोबेल की भावना के खिलाफ माने गए।
मचाडो बनीं लोकतंत्र की प्रतीक
वहीं दूसरी ओर, मारिया कोरिना मचाडो को नोबेल मिलने से यह स्पष्ट संकेत गया है कि नोबेल समिति उन लोगों को प्राथमिकता देती है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए साहसिक संघर्ष करते हैं। मचाडो लंबे समय से वेनेजुएला में तानाशाही शासन के खिलाफ संघर्ष कर रही हैं और लाखों नागरिकों के लिए आशा की किरण बन चुकी हैं।
इस साल के नोबेल शांति पुरस्कार का निर्णय एक बार फिर यह दिखाता है कि वैश्विक सम्मान सिर्फ दावों से नहीं, बल्कि साहसिक और नैतिक नेतृत्व से हासिल होता है।