
नई दिल्ली: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हाल ही में वक्फ (संशोधन) बिल, 2025 को मंजूरी दे दी है, जिसके बाद यह कानून बन गया है। हालांकि, इस बिल के पारित होने के बाद राजनीति और कानूनी हलकों में मचे घमासान ने देशभर में हलचल मचा दी है। इस संशोधन को “ऐतिहासिक सुधार” बताया जा रहा है, जो वक्फ संपत्तियों के प्रशासन में सुधार लाने का दावा करता है। सरकार का कहना है कि यह कदम मुस्लिम समुदाय के कल्याण के लिए उठाया गया है।
राज्यसभा में 128 वोटों से पारित होने के बाद यह बिल अब कानून बन चुका है, लेकिन विपक्षी पार्टियों ने इसे “विरोधी मुस्लिम” और “असंवैधानिक” करार दिया है। कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं ने इस बिल को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
जावेद की याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह बिल वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन पर “मनमानी पाबंदियां” लगाता है, जो मुसलमानों के धार्मिक स्वायत्तता का उल्लंघन है। उनका कहना है कि यह विधेयक मुस्लिम वक्फों पर ऐसे प्रतिबंध लगाता है, जो अन्य धर्मों के धार्मिक दान पर लागू नहीं होते।
ओवैसी ने भी अपनी याचिका में इस भेदभाव को उजागर किया है, जिसमें उन्होंने कहा कि यह बिल वक्फों के लिए सुरक्षा को कमजोर करता है, जबकि अन्य धर्मों के धार्मिक और चैरिटेबल दान के लिए वही सुरक्षा बनी रहती है। उनका कहना है कि यह मुसलमानों के खिलाफ भेदभावपूर्ण कदम है, जो भारतीय संविधान के कई अनुच्छेदों का उल्लंघन करता है।
इसके अलावा, आम आदमी पार्टी (AAP) के विधायक अमानतुल्लाह खान ने भी सुप्रीम कोर्ट में इस बिल को असंवैधानिक घोषित करने की अपील की है। उनका कहना है कि यह बिल संविधान के धार्मिक स्वतंत्रता और भेदभाव के खिलाफ किए गए अनुच्छेदों का उल्लंघन करता है।
संघर्ष की इस स्थिति में, नागरिक अधिकारों की रक्षा करने वाले एनजीओ “Association for the Protection of Civil Rights” ने भी इस बिल को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, और इसके संविधानिक वैधता पर सवाल उठाए हैं।
कुल मिलाकर, यह बिल देशभर में गहरी राजनीति और कानूनी बहस का कारण बन गया है, और सुप्रीम कोर्ट की आगामी सुनवाई पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं।