मुंबई: महाराष्ट्र में मराठी बनाम हिंदी भाषा विवाद ने एक बार फिर तूल पकड़ लिया है। इस बार महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) ने मोर्चा संभालते हुए हिंदी के प्रचार के खिलाफ तीखा विरोध जताया है। पार्टी ने मुंबई के दादर इलाके में भड़काऊ पोस्टर लगाए हैं, जिन पर लिखा है—”हम हिन्दू हैं, लेकिन हिंदी नहीं”। दादर को मराठी संस्कृति का गढ़ माना जाता है और यहां ऐसे पोस्टर लगना राजनीतिक हलकों में बहस का विषय बन गया है।
MNS प्रमुख राज ठाकरे ने राज्य सरकार के उस फैसले की तीखी आलोचना की है जिसमें पहली कक्षा से हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा के रूप में पढ़ाया जाना तय किया गया है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि उनकी पार्टी इस तरह की जबरदस्ती कतई बर्दाश्त नहीं करेगी।
राज ठाकरे ने सोशल मीडिया पर कहा कि राज्य पाठ्यक्रम योजना 2024 के अनुसार महाराष्ट्र में पहली कक्षा से हिंदी को अनिवार्य किया गया है। उन्होंने पूछा कि जब हिंदी भी एक राज्य भाषा है, तो फिर महाराष्ट्र में इसे प्राथमिक शिक्षा से ही क्यों थोपा जा रहा है?
उन्होंने केंद्र सरकार पर “हिंदीकरण” के प्रयास का आरोप लगाते हुए कहा कि देश की राज्य संरचना भाषाई आधार पर बनी थी और वर्षों से यही व्यवस्था चली आ रही है। “तीन-भाषा फार्मूला केवल शासकीय कामकाज तक सीमित रहना चाहिए, शिक्षा पर इसे थोपना अनुचित है,” ठाकरे ने कहा।
राज ठाकरे ने चेतावनी दी कि अगर राज्य सरकार ने यह फैसला वापस नहीं लिया तो एक तीखा आंदोलन छेड़ा जाएगा और इसके परिणामों की जिम्मेदारी बीजेपी नेतृत्व वाली राज्य सरकार की होगी।
गौरतलब है कि राज्य सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत एक नया पाठ्यक्रम लागू किया है, जिसके अनुसार 2025-26 शैक्षणिक वर्ष से पहली कक्षा में मराठी और अंग्रेजी के साथ हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा के रूप में पढ़ाया जाएगा। सरकार का कहना है कि यह कदम छात्रों को बहुभाषी बनाने की दिशा में है, लेकिन MNS समेत कुछ मराठी संगठनों ने इसे मराठी अस्मिता के खिलाफ बताया है। भाषाई पहचान को लेकर शुरू हुआ यह विवाद अब राजनीतिक रंग ले चुका है और आने वाले दिनों में यह मुद्दा महाराष्ट्र की राजनीति में और गरमाने की संभावना है।