नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी के खिलाफ दायर मानहानि याचिका को खारिज कर दिया। यह याचिका भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की तेलंगाना इकाई की ओर से दाखिल की गई थी, जिसमें राज्य हाईकोर्ट द्वारा ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही रद्द करने के फैसले को चुनौती दी गई थी।
मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई के नेतृत्व वाली पीठ ने सुनवाई के दौरान तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि राजनीति से जुड़े लोगों को “मोटी चमड़ी वाला” बनना चाहिए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि न्यायालय को राजनीतिक मंच नहीं बनने दिया जा सकता और ऐसे मामलों में हर बात पर अदालत में आना उचित नहीं।
कोर्ट की टिप्पणी: “राजनीति को कोर्ट में न लाएं”
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी की याचिका को खारिज करते हुए कहा, “अगर आप राजनीति में हैं तो आलोचना सहने की क्षमता भी होनी चाहिए। हर आलोचना या बयान को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाना जरूरी नहीं है। लोकतंत्र में यह सब चलता है।”
मामला क्या था?
यह विवाद रेवंत रेड्डी द्वारा लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान एक जनसभा में दिए गए बयान से जुड़ा है। बीजेपी का आरोप था कि रेड्डी ने पार्टी को बदनाम करने के इरादे से भड़काऊ और झूठा बयान दिया था। उन्होंने दावा किया था कि यदि बीजेपी सत्ता में आती है, तो वह आरक्षण व्यवस्था को समाप्त कर देगी।
बीजेपी की ओर से यह तर्क दिया गया कि रेवंत रेड्डी का बयान न सिर्फ मानहानिकारक था, बल्कि पार्टी की चुनावी संभावनाओं को भी नुकसान पहुंचाने वाला था।
ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट का रुख
अगस्त 2023 में ट्रायल कोर्ट ने रेवंत रेड्डी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनते हुए कार्यवाही आगे बढ़ाने की बात कही थी। इस आदेश को चुनौती देते हुए रेड्डी ने तेलंगाना हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही को रद्द करने की मांग की। हाईकोर्ट ने उनकी याचिका स्वीकार कर कार्यवाही रद्द कर दी थी।
हाईकोर्ट के इसी फैसले को बीजेपी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसे अब शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल इस विशेष मामले में निर्णायक रहा, बल्कि यह राजनेताओं के लिए भी एक स्पष्ट संदेश है कि सार्वजनिक जीवन में आलोचना और तीखी टिप्पणियां आम हैं, और इन्हें व्यक्तिगत मानहानि के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोर्ट का यह रुख भारतीय लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राजनीति में स्वस्थ संवाद को बढ़ावा देने वाला माना जा रहा है।