नई दिल्ली: सावन या श्रावण का महीना हिंदू धर्म में भगवान शिव को समर्पित सबसे पवित्र समयों में से एक माना जाता है। इस पूरे महीने शिवभक्त उपवास रखते हैं, मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और अपने खान-पान व जीवनशैली में शुद्धता लाने का प्रयास करते हैं। खास बात यह है कि इस महीने मांसाहारी भोजन और शराब से दूरी बनाए रखने की परंपरा बेहद अहम मानी जाती है। यह केवल धार्मिक कारणों से नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी आवश्यक है।
सावन में शरीर क्यों होता है संवेदनशील?
सावन का महीना आमतौर पर मानसून के दौरान आता है, जब बारिश और नमी के कारण वातावरण में बदलाव होता है। आयुर्वेद के अनुसार, इस मौसम में पाचन तंत्र कमजोर हो जाता है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी गिरावट आती है। ऐसे में पचने में भारी चीजों और विषाक्त पदार्थों से परहेज करना बेहद जरूरी हो जाता है।
शराब से होने वाले नुकसान
- पाचन क्रिया पर असर:
आयुर्वेद के अनुसार, शराब का स्वभाव ‘गर्म’ और ‘अम्लीय’ होता है। यह कमजोर पाचन तंत्र को और अधिक प्रभावित करता है, जिससे गैस, अपच और डिहाइड्रेशन जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं। - रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी:
शराब शरीर के इम्यून सिस्टम को कमजोर करती है। सावन में पहले ही संक्रमण और मौसमी बीमारियों का खतरा अधिक होता है, ऐसे में शराब पीना शरीर को और अधिक संवेदनशील और बीमारियों के प्रति असुरक्षित बना सकता है।
मांसाहारी भोजन से परहेज क्यों?
- संक्रमण का खतरा बढ़ता है:
मानसून के दौरान मांस, मछली और अंडों में बैक्टीरिया और परजीवियों का खतरा ज्यादा रहता है। इससे फूड पॉइज़निंग, डायरिया और अन्य संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है। - पाचन पर बोझ:
मांसाहारी भोजन तामसिक होता है, यानी भारी और पचने में कठिन। यह शरीर पर अतिरिक्त बोझ डालता है और मानसून के मौसम में एसिडिटी, गैस और पेट फूलने जैसी समस्याएं पैदा कर सकता है। - प्रजनन काल में मछलियों का शिकार अनुचित:
इस समय मछलियों का प्रजनन काल होता है, और इनका सेवन करने से प्राकृतिक संतुलन पर भी असर पड़ता है।
धार्मिक दृष्टिकोण: क्यों जरूरी है परहेज?
- सावन का संबंध साधना और शुद्धि से:
सावन का महीना आत्म-नियंत्रण, संयम और साधना का प्रतीक है। भगवान शिव को सात्विक जीवनशैली पसंद है और इस समय भक्तों को तामसिक प्रवृत्तियों से दूर रहकर मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ना चाहिए। - गंगाजल और पवित्रता का प्रतीक:
सावन में गंगाजल और नदियों का पवित्र स्नान बहुत मायने रखता है। ऐसे में मांसाहार और शराब का सेवन इस पवित्रता के माहौल के विपरीत माना जाता है।
सावन के महीने में मांसाहार और शराब से दूरी रखना सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक स्वास्थ्यवर्धक और वैज्ञानिक रूप से समर्थित जीवनशैली का हिस्सा है। यह संयम, शुद्धता और साधना का समय है, जो ना केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होता है। ऐसे में सावन के इस पवित्र महीने में इन तामसिक आदतों से परहेज कर एक सात्विक और संतुलित जीवन की ओर बढ़ना समय की मांग है।