26 नवंबर 2008, एक ऐसा दिन जिसे भारत कभी नहीं भूल सकता। मुंबई, जो अपनी रफ्तार और जिंदादिली के लिए जानी जाती है, उस दिन आतंक और दहशत का पर्याय बन गई। पाकिस्तान से आए 10 आतंकवादियों ने समंदर के रास्ते भारत की आर्थिक राजधानी पर हमला कर दिया।
ये हमला पहले से प्लान किया गया था और इसका मकसद था निर्दोष नागरिकों को निशाना बनाना। सबसे पहले छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस पर गोलीबारी हुई, जिसमें दर्जनों लोग मारे गए। इसके बाद लियोपोल्ड कैफे, ताज होटल और ओबेरॉय होटल जैसे प्रमुख स्थानों को निशाना बनाया गया। नरीमन हाउस में भी हमला हुआ, जहां मासूम यहूदी परिवारों को निशाना बनाया गया।
हमला कुल 60 घंटों तक चला, जिसमें 166 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए। इस आतंक का मुकाबला करने के लिए भारतीय सेना, एनएसजी कमांडो और मुंबई पुलिस ने मोर्चा संभाला। ताज होटल और नरीमन हाउस की घेराबंदी के दौरान कई जवान शहीद हुए, जिनमें एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे, विजय सालस्कर और अशोक कामटे जैसे वीर योद्धा शामिल थे।
आतंकियों ने अपने मंसूबे को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास किया, लेकिन आखिरकार 9 आतंकवादी मारे गए और एक, अजमल कसाब, को जिंदा पकड़ लिया गया। कसाब ने हमले के पीछे पाकिस्तान की भूमिका को उजागर किया, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।
26/11 सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास में लिखा गया ऐसा काला अध्याय है, जिसने हर भारतीय को झकझोर कर रख दिया। यह दिन हमें सिखाता है कि सुरक्षा में कोई भी ढिलाई देश की कीमत पर भारी पड़ सकती है।