नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड में 11 साल बाद आया फैसला, 2 उम्रकैद 3 बरी

Narendra Dabholkar
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नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड में 11 साल बाद आया फैसला, 2 उम्रकैद 3 बरी

नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड में 11 साल बाद आया फैसला, 2 उम्रकैद 3 बरी

एक दशक से अधिक समय तक चली लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, हाई-प्रोफाइल नरेंद्र दाभोलकर हत्या मामले में फैसला सुनाया गया है, जिससे उस मामले का आंशिक पटाक्षेप हो गया है जिसने वर्षों से देश का ध्यान खींचा हुआ है। विशेष अदालत ने प्रसिद्ध तर्कवादी और कार्यकर्ता नरेंद्र दाभोलकर की हत्या में शामिल होने के लिए सचिन अंदुरे और शरद कालस्कर को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। इसके अतिरिक्त, मामले में आरोपी तीन आरोपियों को निर्णायक सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया है।

यह फैसला नरेंद्र दाभोलकर के लिए न्याय की तलाश में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जिनकी 20 अगस्त, 2013 को पुणे में बेरहमी से गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। अंधविश्वास और रूढ़िवादिता के खिलाफ अपने अथक अभियान के लिए जाने जाने वाले दाभोलकर की हत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। व्यापक आक्रोश, अपराधियों को पकड़ने के लिए त्वरित और निर्णायक कार्रवाई की मांग।

सचिन अंदुरे और शरद कालस्कर की सजा सीबीआई और अभियोजकों के अथक प्रयासों का एक प्रमाण है, जिन्होंने दाभोलकर की हत्या के पीछे साजिश के जटिल जाल को उजागर करने के लिए अथक प्रयास किया। जघन्य काम को अंजाम देने के लिए जिम्मेदार दो व्यक्तियों को सजा सुनाए जाने से एक कड़ा संदेश जाता है कि कार्यकर्ताओं और सामाजिक सुधार के समर्थकों के खिलाफ हिंसा के अपराधियों को उनके कार्यों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा।

हालाँकि, तीन आरोपी व्यक्तियों का बरी होना इस प्रकृति के मामलों पर मुकदमा चलाने से जुड़ी जटिलताओं और चुनौतियों को रेखांकित करता है। व्यापक जांच और कानूनी कार्यवाही के बावजूद, अदालत ने निर्धारित किया कि उचित संदेह से परे उनके अपराध को स्थापित करने के लिए अपर्याप्त सबूत थे, जिससे आपराधिक परीक्षणों में सबूतों की गहन और सावधानीपूर्वक जांच की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।

क्या है दाभोलकर की हत्या की वजह?

अभियोजन पक्ष के मुताबिक, वीरेंद्र तवाड़े दाभोलकर हत्याकांड के मास्टरमाइंडों में से एक था. सीबीआई का मानना है कि दाभोलकर की हत्या के पीछे की मुख्य वजह महाराष्ट्र अंधश्रद्धा उन्मूलन समिति और सनातन संस्था के बीच का टकराव रही. दावा किया गया कि तावड़े और अन्य आरोपियों वाली सनातन संस्था दाभोलकर के संगठन, महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति (अंधविश्वास उन्मूलन समिति, महाराष्ट्र) के कामकाज का विरोध करती थी.

सीबीआई सूत्रों के मुताबिक, आरोपी डॉ तावड़े 22 जनवरी 2013 को अपनी बाइक से पुणे गया था. इस बाइक का इस्तेमाल वह 2012 से ही कर रहा था. उसी बाइक पर बैठकर हत्यारों ने 20 अगस्त 2013 को डॉ नरेंद्र दाभोलकर पर गोलियां दागी थीं. घटना के बाद भी तावड़े बाइक का इस्तेमाल करता रहा. उसे पुणे के एक गैराज में ठीक भी करवाया गया था. बाद में इसी बाइक को लेकर वो कोल्हापुर भी गया, जहां 2015 में कॉमरेड पंसारे का मर्डर हुआ.

Digikhabar Editorial Team
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