Balasaheb Thackeray Birth Anniversary: मराठी मानुष के नायक बालासाहेब ठाकरे पर राष्ट्रपति ने तक लगा दिया था रोक

Balasaheb Thackeray Birth Anniversary: मराठी मानुष के नायक बालासाहेब ठाकरे पर राष्ट्रपति ने तक लगा दिया था रोक
Balasaheb Thackeray Birth Anniversary: मराठी मानुष के नायक बालासाहेब ठाकरे पर राष्ट्रपति ने तक लगा दिया था रोक

महाराष्ट्र की राजनीति में बालासाहेब ठाकरे का नाम ऐसा है, जो आज भी गूंजता है। 23 जनवरी 1926 को जन्मे बाल ठाकरे ने अपनी सियासी सोच और दमदार व्यक्तित्व से न सिर्फ महाराष्ट्र बल्कि पूरे देश में अपनी अलग पहचान बनाई। शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने मराठी मानुष और हिंदू हितों के लिए एक मजबूत मंच तैयार किया। लेकिन उनके सियासी सफर में एक ऐसा दौर भी आया, जब उनके चुनाव लड़ने पर बैन लगा दिया गया और उनका नाम वोटर लिस्ट से हटा दिया गया।

बालासाहेब ठाकरे और 6 साल का चुनाव बैन

जुलाई 1999 में राष्ट्रपति के. आर. नारायणन ने चुनाव आयोग की सिफारिश पर बाल ठाकरे के चुनाव लड़ने पर 6 साल का प्रतिबंध लगा दिया। उन पर 1987 के महाराष्ट्र विधानसभा उपचुनाव में भड़काऊ भाषण देने और आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने का आरोप था।

विले पार्ले सीट पर शिवसेना उम्मीदवार यशवंत रमेश प्रभु के समर्थन में ठाकरे ने हिंदू मतदाताओं से धर्म के नाम पर वोट देने की अपील की थी। उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि “यह चुनाव रमेश प्रभु, शिवसेना या बाल ठाकरे की नहीं बल्कि हिंदू धर्म की जीत होगी।” उनके इस बयान को जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 123(3) का उल्लंघन माना गया, जिसके तहत धर्म, जाति, भाषा या नस्ल के आधार पर वोट मांगना अपराध है।

हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक मामला

बाल ठाकरे के भाषण के बाद कांग्रेस उम्मीदवार कुंते ने बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर की। 1989 में हाई कोर्ट ने रमेश प्रभु की जीत को चुनौती दी और 1991 में फैसला सुनाते हुए उनकी चुनावी जीत रद्द कर दी। इसके साथ ही, प्रभु के चुनाव लड़ने पर भी 6 साल का प्रतिबंध लगा दिया गया।

प्रभु ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन वहां भी उनकी याचिका खारिज हो गई। वहीं, ठाकरे को भी भड़काऊ भाषण देने का दोषी ठहराया गया। चूंकि ठाकरे किसी सार्वजनिक पद पर नहीं थे, सुप्रीम कोर्ट ने सजा तय करने का अधिकार चुनाव आयोग को दिया।

राष्ट्रपति ने लगाई मुहर

चुनाव आयोग ने 1998 में एक कमेटी बनाकर राष्ट्रपति से सिफारिश की कि बाल ठाकरे को मतदान के अधिकार से वंचित किया जाए। इसके बाद राष्ट्रपति ने आयोग की सिफारिश पर मुहर लगाते हुए ठाकरे के चुनाव लड़ने पर 6 साल का बैन लगा दिया और उनका नाम वोटर लिस्ट से हटा दिया गया।

बाल ठाकरे का जीवन और उनकी विरासत

बाल ठाकरे ने अपने करियर की शुरुआत बतौर कार्टूनिस्ट की थी। लेकिन उनकी दूरदर्शिता और नेतृत्व क्षमता ने उन्हें राजनीति के शिखर तक पहुंचा दिया। उन्होंने मराठी मानुष और हिंदुत्व के मुद्दों को लेकर शिवसेना का गठन किया और मराठी जनता को एकजुट किया।

हालांकि, उनके भाषण और विचार अक्सर विवादों में घिर जाते थे, लेकिन उनकी लोकप्रियता कभी कम नहीं हुई। वह सियासत में एक ऐसे नेता के रूप में याद किए जाते हैं, जिनके फैसलों और बयानों ने दशकों तक महाराष्ट्र की राजनीति को प्रभावित किया।

निष्कर्ष

बालासाहेब ठाकरे का जीवन सियासत और विचारों का संगम था। उनके ऊपर लगा प्रतिबंध उनके करियर का कठिन दौर था, लेकिन इससे उनकी लोकप्रियता पर कोई असर नहीं पड़ा। आज, उनके जाने के 13 साल बाद भी उनकी विचारधारा और नेतृत्व की गूंज महाराष्ट्र की गलियों से लेकर सियासी मंचों तक सुनाई देती है। बाल ठाकरे का जीवन यह संदेश देता है कि सियासत में विचार और साहस, दोनों का होना जरूरी है।