अज़ीम प्रेमजी: कहानी देश के दानवीर की !

समाज में अज़ीम प्रेमजी की पहचान एक सफल बिजनेसमैन और दानवीर के रूप में की जाती है, पद्मभूषण से नवाजे जा चुके प्रेमजी का जीवन सादगी, ईमानदारी, और मेहनत का जीता-जागता उदाहरण है। उनकी म्हणता का प्रशंसनीय उदहारण है की उन्होंने अपने धन का बड़ा हिस्सा समाज कल्याण के कार्यों में लगाया, जैसे शिक्षा और स्वस्थ्य। अज़ीम का जन्म एक बिजनेसमैन के घर हुआ था. उनके पिता मोहम्मद “हाशिम प्रेमजी” बर्मा में चावल के बड़े कारोबारी थे। उन्हें “राइस किंग ऑफ बर्मा” कहा जाता था।

बर्मा से वे भारत आ गए और गुजरात में चावल का कारोबार शुरू किया। अजीम प्रेमजी ने मुंबई में स्कूली शिक्षा ली और फिर इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग (Electrical Engineering) करने अमेरिका स्थित स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी (Stanford University) चले गए। 1966 में जब वे स्टैनफोर्ड में पढ़ाई कर रहे थे तो उनके पिता का देहांत हो गया और उन्‍हें भारत वापस आना पड़ा, मात्र 21 वर्ष की उम्र में अज़ीम प्रेमजी ने कंपनी की कमान संभाली। कुछ शेयरहोल्‍डर ने कहा की वे अनुभवहीन है और कंपनी नहीं चला पाएंगे., लेकिन, प्रेमजी ने हौसला नहीं हारा और कंपनी का नेतृत्‍व कर सभी को गलत साबित किया और कारोबार को ऊंचाइयों पर ले गए।

1977 तक कारोबार काफी फैल गया और अज़ीम प्रेमजी ने कंपनी का नाम बदलकर विप्रो (Wipro) कर दिया. अज़ीम प्रेमजी ने अपनी कमाई का मोटा हिस्सा परोपकारी कार्यों में लगाया। वे अपने हिस्से के 60 फीसदी से ज्यादा शेयर उनके नाम से चल रहे फाउडेंशन के नाम कर चुके हैं, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन भारत के कई राज्यों में स्कूली शिक्षा से लेकर कई अन्य कार्यों में जुटा है।

अज़ीम प्रेमजी ने 2019-20 में परोपकार कार्यों के लिए हर दिन करीब 22 करोड़ रुपये यानी कुल मिलाकर 7,904 करोड़ रुपये का दान दिया। ब्लूमबर्ग के अनुसार, अजीम प्रेमजी 2.02 लाख करोड़ रुपये (Azim Premji net worth) की नेट वर्थ के साथ इस समय देश के 5वें सबसे अमीर आदमी हैं। अज़ीम प्रेमजी (Azim Premji) भारत की एक ऐसी शख्सियत हैं, जिन्हें लोग बिजनेसमैन के तौर पर कम और परोपकारी दानवीर के तौर पर ज्यादा जानते हैं. उनकी चैरिटी और सामाजिक संवेदना को सराहा जाता है, और उनका व्यावसायिक सफर और उनके सामाजिक योगदान ने उन्हें देश भर में प्रशंसनीय स्थिति प्रदान की है।

Digikhabar Editorial Team
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